डायबिटीज- जरुरी है दाँतों और मसूड़ों की उचित देखभाल

डायबिटीज के मरीजों को, अपने दाँतों और मसूड़ों को नुकसान से बचाने के लिए उनकी उचित देखभाल करनी चाहिए। दाँतों और मसूड़ों की देखभाल में सबसे पहली शर्त उनकी सफाई होती है, इसीलिए नियमित तौर पर अपने दांतों को साफ़ करें।
 कुछ अन्य तरीकें जिनसे आप अपने दांतों को नुकसान होने से बचा सकतें हैं-

नियंत्रित रखें डायबिटीज- अपने ब्लड शुगर पर नजर रखें, डॉक्टर द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन करें। आप जितने अच्छे से अपने ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखेंगे, आपमें मसूड़े की सूजन जैसी समस्याएं उतनी ही कम होंगी।
  • दिन में तीन बार ब्रश करें – सुबह उठने के बाद और रात को ब्रश करने के अलावा कोशिश करें कि एक बार दिन में भी ब्रश कर लें। ध्यान रहे कि आपका ब्रश बेहद मुलायम होना चाहिए। वहीं केमिकल्स वाले टूथपेस्ट से बचें। फ्लोराइड वाले टूथपेस्ट का प्रयोग करें।
  • कम से कम दिन में एक बार फ्लॉस जरूर करें- फ्लॉसिंग (दाँतों को धागे से साफ करना) दांतों से प्लेक हटाने का बेहतर तरीका है। क्योंकि डायबिटीज के मरीजों में प्लेक जमने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं, इसीलिए कोशिश करें कि दिन में कम से कम एक बार फ्लॉसिंग जरूर करें।
  • दांतों की लगातार जांच- कम से कम साल में दो बार डेंटिस्ट के पास जरूर जाएं, और अपने दांत साफ करवाएं।
    डॉक्टर को दें डायबिटिक होने की जानकारी- अपने डॉक्टर को यह भी बता दें कि आपको डायबिटीज है। यह भी उचित रहेगा कि आप अपने डेंटिस्ट की बात डायबिटीज का इलाज कर रहे डॉक्टर से करवा दें।
  • मसूड़ों पर रखें नजर- डायबिटीज के मरीज शरीर के हिस्सों समेत अपने मसूड़ों पर भी नजर रखें। यदि आपको कोई भी असामान्यता जैसे, मसूड़ों में सूजन या दर्द या लाली नजर है, तो देर न करें और अपने डेंटिस्ट से सम्पर्क करें। इसके अलावा यदि आपको कोई और समस्या, जैसे मुँह में दर्द,दांत टूटना है तो उसकी भी जानकारी अपने डेंटिस्ट को दे दें।
  • धूम्रपान न करें- धूम्रपान आपकी डायबिटीज की समस्या को और भी घातक बना सकता है। इसलिए धूम्रपान छोड़ने के लिए अपने डॉक्टर से मदद लें।
    डायबिटीज और इस से होने वाली समस्याओं के लिए आपको, महज एक निश्चित समय के लिए नहीं बल्कि जिंदगी भर अपना ध्यान रखना पड़ता है। इसीलिए अपने स्वास्थ्य का उचित देखभाल रखने की अपनी आदत बना लें।
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डायबिटीज इन्सिपिड्स क्या है?

हमारा शरीर एक पदार्थ, जिसे एंटी- डाइयुरेटिक हार्मोन (ADH) कहते हैं, का निर्माण करता है। यह मस्तिष्क के एक हिस्से में बनता है, जिसे हाइपोथेलेमस कहा जाता है। हाइपोथेलेमस में बनने के बाद यह पीयूष ग्रंथि (Pituitary gland) में इकट्ठा हो जाता है। यही से गुर्दों को पानी को संरक्षित करने का सन्देश मिलता है, और इसी से शरीर यूरिन के प्रति सचेत रहता है।
जब आपको प्यास लगती है, और शरीर में पानी की कमी महसूस होती है, तो आपके ADH का स्तर बढ़ने लगता है। इससे आपकी किडनियां ज्यादा से ज्यादा पानी को अवशोषित करती हैं और उसे यूरिन के रास्ते बाहर निकाल देती हैं। यदि आप खूब सारा पानी पीतें हैं, तो ADH स्तर गिर जाता है और इसका नतीजा साफ़ और पतले यूरिन के रूप में सामने आता है।
जब शरीर उचित मात्रा में ADH का निर्माण नहीं कर पाता, तो इस स्थिति को सेंट्रल डाइबिटीज इन्सिपिड्स (Central Diabetes Insipidus) कहा जाता है। वहीं यदि ADH का निर्माण उचित मात्रा में हो भी रहा हो, लेकिन आपकी किडनियां इसका प्रयोग उचित प्रकार से नहीं कर पा रही हो, तो इसे नेफ्रोगेनिक डायबिटीज इन्सिपिड्स (Nephrogenic Diabetes Insipidus) कहा जाता है।
एक और स्थिति जिसमें यदि शरीर पानी को संरक्षित नही कर पाता, तो भी नतीजा एक ही होता है। जब गुर्दें पानी को संरक्षित नहीं कर पाते, और आपमें पानी की कमी हो जाती है, तो इसमें यूरिन पीला या फिर पतला हो सकता है।
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मधुमेह के लिए वैकल्पिक चिकित्सा

विटामिन और खनिज
वैकल्पिक चिकित्सा (Alternative medicine) मधुमेह के लिए वह ट्रीटमेंट है जिसे आप खुद की जानकारियों के आधार पर करते हैं, और यह चिकित्सा प्रणाली में शामिल नहीं होती। लेकिन साथ ही एक बात यह भी ध्यान रखनी चाहिए कि इसे मधुमेह के मेडिकल ट्रीटमेंट के साथ नहीं करना चाहिए। हालाँकि आप अपनी सामान्य डाइट खान-पान और व्यायाम को लेकर नियमति रहें। लेकिन इनके अलावा घरेलु उपचारों के मामले में अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
ऐसा ही एक वैकल्पिक तत्व क्रोमियम भी है, जिसे मधुमेह चिकित्सा में सहायक माना जाता है। हालाँकि क्रोमियम डोज़ (Chromium does) का असर इन्सुलिन और ग्लूकोज मेटाबॉलिज़्म दोनों पर ही पड़ता है, लेकिन इसका कोई साक्ष्य नहीं है कि क्रोमियम खुराक मधुमेह के इलाज में सफल है। क्रोमियम बहुत से ऐसे खाद्य-पदार्थ हैं जिनमें पाया जाता है, जैसे हरी पत्तेदार सब्जियां, सूखे मेवे और अनाज। हालाँकि अध्ययनों से पता चलता है कि बायोटिन, जिसे विटामिन H भी कहा जाता है, इसे जब क्रोमियम के साथ मिलाकर प्रयोग किया जाता है तो यह ग्लूकोज मेटाबॉलिज़्म को प्रभावित करता है। लेकिन ऐसा किसी भी अध्ययन में नहीं दिया गया है कि बायोटिन अपने आप इस बीमारी में सहायक है।
विटामिन B -6 और B 12:
यह विटामिन्स मधुमेह तंत्रिका दर्द (Diabetic nerve pain) में सहायक हो सकते हैं, लेकिन इसके अलावा इन्हें मधुमेह में ज्यादा कारगार नहीं पाया गया है।
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विटामिन C:
यह विटामिन इन्सुलिन के रक्त में कम स्तर पर कार्य करता है। जिस से हमारी सेल्स को विटामिन्स को अवशोषित करने में सहायता मिलती है। विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा शरीर के कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित रखने में मदद कर सकती है। इसके अलावा यह शर्करा के स्तर को भी नियंत्रित रखता है। लेकिन इसका ज्यादा सेवन किडनी में पथरी भी बना सकता है। आपको कितनी मात्रा में विटामिन सी लेनी है इसके लिए अपने डॉक्टर से बात करें।
विटामिन E:
विटामिन रक्त वाहिकाओं की सुरक्षा कर उन्हें नुकसान होने से बचाता है। इसके अलावा  इस बीमारी से आँखों और किडनियों को नुकसान होने से भी बचाता है। लेकिन इसकी ज्यादा मात्रा स्ट्रोक के खतरे को भी बढ़ा सकती है। इसलिए इसे भी कितनी मात्रा में लेना है इसके लिए अपने डॉक्टर से सम्पर्क जरूर करें।
मैगनीशियम:
यह खनिज पदार्थ भी शुगर के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद करता है। कुछ मधुमेह पीड़ितों में मैग्नीशियम की मात्रा घातक तरीके से कम होती है।
मस्तिष्क / शरीर चिकित्सा
काल्पनिक निर्देशन, बायोफीडबैक, ध्यान, हाइपोथेरेपी और योग, तनाव वाले हार्मोन्स को कम करता है। इस से रक्त शर्करा के स्तर को कम होने में भी मदद मिलती है। इसके अलावा बायोफीडबैक रक्त चाप (Blood Pressure) को भी कम करता है। साथ ही मधुमेह और रक्त चाप के ट्रीटमेंट के लिए इसे लेकर और भी खोज चल रही है।
हर्बल उपचार
केप्सैसिन क्रीम:
यह एक ऐसी क्रीम है जो लाल मिर्च से बनी है। इसका प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जिनमें हाथों और पैरों में दर्द की समस्या रहती है। लेकिन ऐसे लोग जिनमें हाथों और पैरों में संवेदना खत्म होने की परेशानी रहती है, उनके लिए इसके प्रयोग के समय सतर्क रहना जरुरी है। हो सकता है कि इस दवाई के प्रयोग से हो सकता है कि उन्हें पूरी तरह से आराम न मिले। इसलिए यदि आप भी इसे प्रयोग करने की सोच रहें तो इसके लिए पहले अपने डॉक्टर से बात जरूर कर लें। .
इवनिंग प्राइमरोज तेल:
यह तेल मधुमेह पीड़ितों में तंत्रिका दर्द (nerve pain) में लाभदयक है। लेकिन इसका भी कोई खास सबूत नहीं है।
जिनको, लहसुन, पवित्र तुलसी के पत्ते, मेथी के बीज, जिनसेंग, और नागफनी भी ऐसे दूसरे हर्बल पदार्थ हैं जो मधुमेह में राहतकारी होती हैं। लेकिन इस पर अभी और भी रिसर्च होनी बाकी है। एक और बात कि इन्हें भी प्रयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से बात जरूर करें।
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मधुमेह के लक्षण

मधुमेह की शुरुआत कब और कैसे हो जाती है, इसकी जानकारी मधुमेह के अधिकतर रोगियों को नहीं मिल पाती। यहाँ तक कि शुरुआती जांच में भी इसका पता लगाना मुश्किल ही होता है। ऐसे में भला कैसे आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको मधुमेह है या नहीं?

लेकिन यह भी सच है कि मधुमेह के शुरुआती लक्षण सामान्य मधुमेह स्तर के मुकाबले अधिक होते हैं। इसके चेतावनी भरे लक्षण शुरुआत में नजर नहीं आते और नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। खासकर यह बात टाइप 2 मधुमेह में और भी ज्यादा प्रभावी होती है। उन्हें इनकी जानकारी तब तक नहीं होती जब तक लगातार पनपती मधुमेह के कारण शरीर की कोई हानि नहीं हो जाती।
लेकिन टाइप 1 मधुमेह के लक्षण बेहद तेजी से सामने आते हैं। यह मात्र केवल कुछ दिनों या हफ़्तों में उजागर हो जाते हैं। साथ ही यह काफी घातक भी होते हैं।
1)टाइप 1 मधुमेह के लक्षण
2)टाइप 2 मधुमेह के लक्षण
3)मधुमेह के कुछ सामान्य लक्षण

1) टाइप 1 मधुमेह के लक्षण
अचानक से वजन घटना
अगर आपके शरीर को खाने से पर्याप्त ऊर्जा प्राप्त नहीं होगी तो हमारा शरीर ऊर्जा के लिए हमारी मांशपेशियों के फैट को तोड़ कर ऊर्जा प्राप्त करने लगेगा। जिसके कारण बिना वजह किसी योजना के घटना शुरू हो जाएगा।
मचली या उल्टी होना
हमारे शरीर द्वारा अपने जमे हुए फैट को तोड़े जाने की स्थिति में कीटोन्स का बनना शुरू हो जाता है। यदि इन कीटोन्स की संख्या रक्त में बढ़ने लग जाए और एक निश्चित सीमा से बाहर चली जाए तो इसकी वजह से जीवन को भी खतरा हो जाता है। इस स्थिति को डायबिटीज कीटो एसिडोसिस भी कहतें हैं। कीटोन्स बढ़ने से पेट की परेशानियां आम हो जाती हैं।
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डॉक्टर से संपर्क
अगर आप की उम्र 45 से ज्यादा है या फिर आपमें मधुमेह होने की सम्भावना है तो आपको डॉक्टर से नियमति तौर पर अपना चेकअप कराना चाहिए। जितना जल्दी आपकी बीमारी पता चलेगी उतनी जल्दी आप ऐसी खतरनाक बीमारियाँ जैसे तंत्रिका की क्षति, हृदय की बीमारियाँ, और अन्य जटिलताओं से बच सकेंगे।
अगर आपको इनमें से कोई भी लक्षण नजर आए तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें:
  • पेट की परेशानी, कमजोरी, और बार बार प्यास लगना।
  • बार बार यूरिन आना।
  • पेट में बहुत दर्द होना।
  • सामान्य से ज्यादा गहरी और तेज साँसें आना।
  • जब आपकी सांसो से नेलपॉलिश रिमूवर जैसी बदबू आने लगे, जो रक्त में कीटोन्स की बहुत ज्यादा मात्रा बढ़ने का संकेत है।
2) टाइप 2 मधुमेह के लक्षण
जिन लोगों में काफी समय तक ग्लूकोज के बढे हुए स्तर की अनदेखी की जाती है उनमें कुछ इस तरह के लक्षण उभर कर सामने आते हैं।
खमीर संक्रमण: यह संक्रमण महिलाओं और पुरुषों दोनों में ही सामान रूप से होता है। यीस्ट ग्लूकोज पर ही पनपता है और ग्लूकोज का स्तर बढ़ने से यीस्ट की मात्रा भी बढ़ जाती है। यह संक्रमण किसी भी स्थिति, गुनगुनी या नम जगह में पनप सकता है। संक्रमण ज्यादातर शरीर के इन हिस्सों पर होता है।
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  • उँगलियों और अंगूठों के बीच
  • वक्ष स्थल के नीचे
  • जननांगो के आस-पास
घावों के भरने में वक्त लगना, रक्त में शर्करा धीरे-धीरे पूरे शरीर को प्रभावित करती है। यहाँ तक कि यह रक्त के प्रवाह को प्रभावित कर नसों को भारी नुकसान भी पहुंचा सकती है। यही कारण होता है कि मधुमेह के मरीजों में चोट लगने पर घाव जल्दी नहीं भर पाते। इसके अलावा नसों की हानि की वजह से ही पैरों और टांगों में दर्द भी रहता है।

3) मधुमेह के कुछ सामान्य लक्षण
मधुमेह के दोनो ही तरह के प्रकारों के लक्षण लगभग एक जैसे ही होतें हैं, जिनके द्वारा इन्हें अलग करना मुश्किल होता है।
ज्यादा भूख और थकान: हमा जो भी खाते हैं हमारा शरीर उसे ग्लूकोज में बदल देता है जिसे हमारी कोशिकायें उर्जा के रूप मे उपयोग करती है। लेकिन हमारे शरीर की सेल्स को ग्लूकोज को उन तक पहुंचाने के लिए इन्सुलिन की भी जरूरत होती है। यदि हमारा शरीर पर्याप्त मात्रा में इन्सुलिन नहीं बना पाता या फिर हमारी कोशिकाएं उनका विरोध कर देती हैं, तो ग्लूकोज पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा में नहीं बदल पाता। जिस से हमारे शरीर को ऊर्जा नहीं मिल पाती। इस से मधुमेह के रोगियों को जरूरत से ज्यादा भूख लगनी शुरू हो जाती है।
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बार-बार मूत्र आना और अत्यधिक प्यास लगना: एक स्वास्थ्य व्यक्ति 24 घंटे मे 4 से 7 बार यूरिन के लिए जाता है, लेकिन मधुमेह के रोगियों में इसकी संख्या ज्यादा होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि, सामान्य तौर पर हमारा शरीर किडनी द्वारा निकाले गए ग्लूकोज को एक बार फिर से अवशोषित कर लेती है। लेकिन जब मधुमेह में रक्त में शर्करा बढ़ जाती है तो शरीर इसे वापिस लाने में सक्षम नहीं रहता। इसलिए आपका शरीर यूरिन के माध्यम से इसे निकालने की कोशिश करता है। इसी की वजह से मधुमेह के रोगियों को यूरिन की समस्या ज्यादा होती है।
मुँह की खुश्की और शरीर में निरन्तर खुजली: क्योकि हमारे शरीर का सारा तरल पदार्थ पेशाब के निर्माण मे प्रयोग हो जाता है, इसलिए बाकी चीज़ों मे नमी की कमी हो जाती है। पानी की कमी के कारण आप निर्जलित (Dehydrated) हो जाते है, और आपका मुँह खुश्क और त्वचा शुष्क हो जाती है। शुष्क त्वचा के कारण खुजली होने लगती है।
नेत्र की ज्योति बिना किसी कारण के कम होना: हमारे शरीर मे तरल पदार्थ के बदलते स्तर की वजह से आँखों के लेंस फूल जाते है। उनका आकार बदल जाता है, और फोकस करने की छमता ख़त्म हो जाती है

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क्या होता है प्री-डायबिटीज?

प्री-डायबिटीज एक ऐसी डायबिटीज होती है, जो टाइप 2 डायबिटीज से पहले होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि प्री-डायबटीज के मरीजों में इसके लक्षण नजर नहीँ आते। इस तरह की डायबिटीज का मतलब होता है कि व्यक्ति को डायबिटीज तो है, लेकिन उसके रक्त में ब्लड शुगर का स्तर इतना भी ज्यादा नहीं है कि जाँच के दौरान उसका पता लगाया जा सके।
इलाज के जरिए इस समस्या को रोका जा सकता है ,नहीं तो बाद में यह और अधिक गंभीर हो सकता है। भविष्य मेँ यह बीमारी टाइप टू डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग से जुड़ी समस्याएँ, रक्त वाहिकाओं, कमजोर दृष्टि और गुर्दे की खराबी के रुप मेँ सामने आ सकती है।
यदि आपको डायबिटीज हो चुकी है तो इस बीमारी के अलावा कुछ और बीमारियाँ है जो खुद ब खुद आपके शरीर मेँ घर बना लेती है।
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टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावनाएं ऐसे लोगों में होती है जिनमें

  • डायबिटीज, का पारिवारिक इतिहास रहा हो।
  • जेस्टेशनल डायबिटीज रही हो, या फिर जन्म के समय बच्चे का वजन 9 पौंड से ज्यादा रहा हो।
  • पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (PCOS)
  • मोटा हो या वजन बहुत ज्यादा हो, खासकर पेट के आस पास।
  • कोलेस्ट्रॉल या ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर ज्यादा हो, अच्छे कोलेस्ट्रॉल HDL का स्तर कम और बुरे कोलेस्ट्रॉल LDL का स्तर ज्यादा हो।
  • व्यायाम न करता हो।
  • उम्र ज्यादा हो। 45 वर्ष से ज्यादा के लोगों में इसके होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं।
यदि आप पर भी ऊपर दी गई बातें लागू होती हों तो आपको भी अपनी डायबिटीज की जाँच जरूर करानी चाहिए।
  • पहले कभी भी, ब्लड शुगर का लेवल ज्यादा रहा हो।
  • हृदय से जुडी कोई बीमारी हो।
  • इन्सुलिन प्रतिरोध के लक्षण नजर आ रहें हों।

लक्षण

हालाँकि प्री-डायबिटीज के ज्यादातर मरीजों में, ज्यादातर लक्षण नजर नहीं आते। लेकिन कुछ लक्षणों से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। जैसे कि बहुत ज्यादा प्यास लगना, और यूरिन आना, धुंधला दिखाई देना या बेहोशी।

कैसे होती है जाँच?

आप मेँ भी डायबिटीज होने या नहीँ होने की जाँच करने के लिए आपका डॉक्टर तीन मुख्य जाँच मेँ से किसी एक को अपना कर डायबिटीज का पता लगा सकता है। यह तीनोँ टेस्ट है फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोस टेस्ट, ओरल ग्लूकोस टोरेंट टेस्ट या हिमोग्लोबिन A1c टेस्ट।
फास्टिंग प्लाज़्मा ग्लूकोज़ टेस्ट – इस टेस्ट को आप के 8 घंटे के उपवास के बाद लिया जाता है यदि जाँच के बाद आपका ब्लड शुगर लेवल सामान्य से ज्यादा है तो आपको प्री डायबिटीज है।
ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट – इस टेस्ट मेँ उपवास के बाद आपको मीठा तरल पीने के लिए दिया जाता है और उसके दो घंटे के बाद आपके खून की जाँच की जाती है। जाँच मेँ यदि आपका ब्लड शुगर सामान्य से ज्यादा है तो आपको प्री-डायबिटीज है।
हीमोग्लोबिन A1C टेस्ट – हर तीन महीने मेँ आपके ब्लड शुगर की जाँच करता है, यह टेस्ट यह देखने के लिए किया जाता है कि आपका ब्लड शुगर लेवल नियंत्रण मेँ है या नहीँ।

उपचार

प्री-डायबिटीज का ट्रीटमेंट बेहद साधारण होता है
  • आपका खानपान स्वस्थ होना चाहिए आपका वजन नियंत्रण मेँ होना चाहिए। यदि आप अपना वजन पांच से 10 प्रतिशत तक भी घटा लेते हैँ, तो इससे आपके स्वास्थ्य पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • प्री-डायबिटीस को मात देने के लिए व्यायाम भी बहुत जरुरी है, हफ्ते के पांच दिन कम से कम 30 मिनट तक व्यायाम करने का नियम जरुर बनाएँ इसकी शुरुआत आप 10 या 15 मिनट से भी कर सकते हैँ, लेकिन साथ ही ऐसा करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरुर ले।
  • धूम्रपान न करें।
  • यदि आपमें हाई कोलेस्ट्रॉल या हाई ब्लड प्रेशर है, तो उसे भी नियंत्रण में रखें।

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डायबिटीज होने पर किन बातों का रखें ख्याल?

यदि आपको अभी-अभी पता चला है कि आपको डायबिटीज है, तो घबराए नहीं। आप अभी भी पहले जैसा ही सामान्य जीवन जी सकते हैं, और वह कर सकतें हैं जो आपको पसंद है। इसके लिए बस आपको डायबिटीज के प्रति जागरूक होना होगा, और स्वस्थ्य आहार के द्वारा इसे उसी जगह पर रोके रखना होगा।
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सबसे पहले क्या करें?

डायबिटीज के प्रति जागरूक बनें
यदि एक बार आपको जाँच के दौरान डायबिटीज की पुष्टि हो गई है, तो सबसे पहला कदम होना चाहिए वह यह, कि आपको डायबिटीज की पूरी जानकारी हो। इसके लिए आप डॉक्टर, या किसी स्वास्थ्य सलाहकार या अन्य किसी भी अच्छे जानकार से जानकारियां इकट्ठी कर सकतें हैं।
जीवन में बदलाव
डायबिटीज की पुष्टि के बाद आपको इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह कौन-कौन से बदलाव और आदतें हैं जो आपको छोड़नी और डालनी पड़ेगी। इन बदलावों में आपको ज्यादा कुछ नहीं करना है, सिर्फ आपको कुछ ऐसी चीजें हैं जो आपके लिए हानिकारक हैं वह छोड़नी होंगी और जो आपके स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद हैं, उन्हें अपनाना होगा।
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डॉक्टर से निरंतर सम्पर्क
डायबिटीज की पुष्टि होने के बाद सबसे महत्वपूर्ण बात जो आपको ध्यान में रखनी है, वह यह कि आपको निरंतर अपने डॉक्टर के सम्पर्क में रहना होगा। इसके अलावा डायबिटीज एजुकेटर, डायटीशियन और कुछ अन्य विशेषज्ञ जो डायबिटीज से सम्बंधित जानकारी रखते हैं, आप उनसे भी जुड़ सकतें हैं। यदि आपके आस-पास या फिर जान-पहचान में किसी को भी यह बिमारी है, तो उस से बात करें।
मेडिकल ट्रीटमेंट
डायबिटीज के मेडिकल ट्रीटमेंट के लिए आप पूरी तरह से अपने डॉक्टर पर निर्भर रहते हैं, और इसके लिए जरुरी होता है कि आप अपने डॉक्टर से निरंतर सम्पर्क में रहें। ट्रीटमेंट के तौर पर, आपका डॉक्टर आपको डायबिटीज के लिए दवाइयाँ, आपकी बिमारी और लक्षणों और जटिलताओं के आधार पर ही देता है। यदि आपको इन्सुलिन की आवश्यकता होती है, तो भी डॉक्टर इसे आपके स्वास्थ्य के अनुसार ही निर्धारित करेगा।
डायबिटीज पर खुद रखें नियंत्रण
डायबिटीज की जांच होने के बाद, इस बिमारी को अपने शरीर में जड़ें ने जमाने देने में, जिसका सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है, वह आप खुद होतें हैं। आपका स्वास्थ्य और बिमारियां आपके अपने जीवन जीने के तरीके और खान-पान पर ही टिकी होती है। यहाँ तक कि आपके शरीर पर दवाइयाँ भी बेहतर असर तभी करती हैं, यदि आप अपने स्वास्थ्य को सभी जरुरी पोषक तत्व प्रदान करतें हैं और नियमित तौर पर एक्सरसाइज करते हैं।

क्या करें?

स्वस्थ्य आहार लें, हर एक खाद्य-पदार्थ जो आप ले रहें हैं, उसका असर आपकी डायबिटीज पर सकारात्मक होना चाहिए, नकारात्मक नहीं और इसकी जानकारी आप अपने डॉक्टर या डायटीशियन से ले सकतें हैं। ज्यादा से ज्यादा एक्टिव रहें, नियमित रूप से व्यायाम करें। सबसे महत्वपूर्ण बात कि अपने डॉक्टर से घर पर ही ब्लड शुगर चेक करने की जानकारी ले लें और खुद इस पर नजर रखें।
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प्री-डायबिटीज पर कैसे लगाई जा सकती है रोक?


prediabetes ki pragati per rokthaam ke tarike | प्री-डायबिटीज की प्रगति पर रोकथाम के तरीकें |Ways to Prevent Prediabetes Progression
आपका डॉक्टर आपके डायबिटीज के होने की पुष्टि कर देता है तो बहुत तरह के विचार आपके मन मेँ आ सकते हैँ। पहला तो यह कि इसे इतनी गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीँ है, दूसरा यह कि क्या मुझे अब डायबिटीज भी हो सकती है, यदि आप ऐसा सोच रहे हैँ तो आपकी दोनोँ ही तरह की सोच गलत है। ऐसा जरुरी नहीँ है कि जिसे प्री डायबिटीज हो उसे डायबिटीज भी हो जाए या फिर इसे हल्के मे ले।
प्री-डायबिटीज की पुष्टि होने के बाद आपको जो सबसे जरुरी काम करना है वह यह है की आपको अपने ब्लड शुगर के लेबल को नियंत्रित करना है। इसके लिए आप को प्रतिदिन की दिनचर्या कैसी है यह बात बहुत मायने रखती है। यहाँ तक की आपकी स्वस्थ जीवन शैली दवाइयोँ से भी ज्यादा बेहतर काम कर सकती है।
अध्ययन मेँ यह बात सामने आई है कि यदि प्री डायबिटीज के मरीज प्रत्येक दिन कुछ समय के लिए व्यायाम करते हैँ, उचित खानपान लेते हैँ, और वजन कम करने की योजना बनाते हैँ तो उनमेँ डायबिटीज टाइप 2 होने की संभावना 58 प्रतिशत तक कम हो जाती है। वही यह प्रतिशत दवाइयोँ के मामले मेँ महज़ 31 प्रतिशत है।
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तीन बदलाव से करे शुरुआत-

1. वज़न घटा लें

यदि आपका वजन ज्यादा है तो वजन घटाना आपके लिए धीरे- धीरे बेहद महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है। अध्ययन मेँ पाया गया है कि अपने वजन मेँ से पांच से 10 प्रतिशत तक वजन मेँ कमी कर लेने से ब्लड शुगर लेवल सीमा के अंदर आ जाता है। या फिर इससे डायबिटीज की गति धीमी हो जाती है।
लक्ष्य को पाने के लिए सबसे पहले आपको अपने खान-पान पर उचित ध्यान देना होगा। आपको अपने खाने मेँ कैलरी की मात्रा खास तौर पर संतृप्त वसा शुगर और कार्बोहाइड्रेट को कम करना होगा। प्रोटीन की मात्रा को कम कर के ताजे फल सब्जियाँ और साबुत अनाज का प्रयोग करना होगा।

2. आदत में शुमार हो व्यायाम

डायबिटीज के मरीज के लिए अपनी दिनचर्या को एक्टिव रखना बेहद जरुरी होता है। आप सप्ताह के 5 दिन कम से कम 30 मिनट रोजाना एक्सरसाइज करे। इसमेँ आप टहलना, साइकिल चलाना और स्विमिंग जैसे व्यायाम कर सकते हैँ। इसके अलावा आप शक्ति प्रशिक्षण व्यायाम जैसे भार उठाना, रेसिस्टेंस बैंड का प्रयोग भी कर सकते हैँ। लेकिन याद रहे कि यह व्यायाम आपको हफ्ते मेँ सिर्फ दो बार ही करना है।
व्यायाम से मांसपेशियां मजबूत होती हैं, और इस से हमारा शरीर इन्सुलिन के प्रति अच्छे से प्रतिक्रिया देने लगता है, और हमारा ब्लड शुगर का लेवल भी कम हो जाता है। ऐसे दैनिक कार्यों को चुने, जिससे आपकी मांसपेशियाँ मजबूत हों, इससे आपके ब्लड शुगर का स्तर भी कम होता है और आपका शरीर इंसुलिन के प्रति अच्छे से प्रतिक्रिया देता है। वही आपका ब्लड शुगर लेवल भी नियंत्रित रहता है।

3. धूम्रपान पर रोक

धूम्रपान का डायबिटीज के साथ बहुत गहरा संबंध है, जो लोग धूम्रपान करते हैँ उनमे टाइप 2 डायबिटीज होने की संभावना 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। जो लोग डायबिटीज के दौरान धूम्रपान को जारी रखते हैँ उनमे ये जटिल समस्याएँ जैसे हृदय रोग और अंधापन जैसी बिमारियां पनप जाती हैं।

4. दवाइयों की ज़रूरत

हालाँकि प्री-डायबिटीज के मरीजों द्वारा उनकी जीवन शैली में किये गए सकारात्मक बदलावों से इस बीमारी पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेकिन इसके मरीजों को दवाइयोँ की भी जरुरत पड़ती है। यदि आपका कोलेस्ट्रोल HDL, कम है और ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर ज्यादा है या फिर आपके परिवार में से पहले भी किसी को डायबिटीज या मोटापा रहा है, तो आपका डॉक्टर आपको मेटफार्मिन की भी सलाह दे सकता है।
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टाइप 2 डायबिटीज की स्क्रीनिंग

hb1acटाइप 2 डायबिटीज, दुनिया भर में पायी जाने वाली, सबसे आम और गंभीर बीमारी है। हालांकि, सोचनें वाली बात यह भी है कि एक तिहाई लोग इस बात से अनजान होते है, की उन्हें टाइप 2 मधुमेह जैसी गंभीर बीमारी है। अक्सर टाइप 2 डायबिटीज के लक्षण नज़र नहीं आते है, लेकिन अगर शुरुआत में ही इनकी पहचान हो जाये तो बहुत सी गंभीर बीमारियाँ जैसे क्रोनिक हाइपरग्यासिमीया (Chronic Hyperglycemia) जो आँख, गुर्दे, नसों, दिल, और रक्त वाहिकाओं को लंबी अवधि तक नुकसान पहुंचाते है, इन सभी से बचा जा सकता है। ऐसे लोग जिनको यह पता ही ना हो कि उन्हें टाइप 2 डायबिटीज है, तो उन्हें स्ट्रोक, कोरोनरी हृदय रोग, और परिधीय संवहनी रोग (Peripheral Vascular Disease) होने का खतरा ज्यादा होता है। मधुमेह से पीड़ित व्यक्तियों में असामान्य कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप और मोटापे की भी अधिक संभावना होती है।
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टाइप 2 डायबिटीज की स्क्रीनिंग

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13th April, 2016  
डायबिटीज के जोखिम के कारक क्या हैं?
डायबिटीज के कुछ आम ज़ोखिम:
  • मधुमेह का पारिवारिक इतिहास (माता-पिता या भाई-बहन को डायबिटीज हो)
  • अधिक वजन ( बॉडी मास इंडेक्स 25 के बराबर या उस से अधिक हो )
  • शारीरिक निष्क्रियता
  • वंश / जातीयता
  • बार-बार इम्पेयर्ड फास्टिंग ग्लूकोज़ (IFG) या इम्पेयर्ड ग्लूकोज़ टॉलरेंस (IGT) का होना
  • उच्च रक्त चाप (व्यस्कों में 140/90 के बराबर या उससे ज्यादा हो)
  • असामान्य लिपिड: HDL कोलेस्ट्रॉल का स्तर 35 mg/dL के बराबर या उससे कम और ट्राइग्लिसराइड का स्तर  250 mg/dL के बराबर या उससे अधिक हो
  • जेस्टेशनल डायबिटीज का इतिहास या  डिलीवरी के समय बच्चे का वजन 9 पाउंड से ज्यादा रहा हो
  • पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, एक प्रकार की समस्या होती है, जिसमे महिलाओं में पाया जाने वाले हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है। इस कारण पीरियड्स के दौरान समस्याएं आती हैं और गर्भवती होने में भी मुश्किलें होती हैं
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टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम कारक

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23rd March, 2016  
Untitled design (4)कुछ ऐसी स्थितियां जिनमें डायबिटीज होने की संभावनाएं और भी बढ़ जाती हैं:
यदि आपमें नीचें दिए गए निम्नलिखित जोखिम कारक मौजूद हैं, तो आपमें डायबिटीज होने की सम्भावना और भी बढ़ जाती है।
  • अगर आपके परिवार में डायबिटीज काफी पहले से चली आ रही हो। यानी यदि आपके परिवार के सदस्य जैसे: माता-पिता, भाई या बहन में से किसी को पहले से डायबिटीज हो तो आपको भी इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही अगर आपका खान-पान स्वस्थ है और आप लगातार व्यायाम भी करते हैं तो आप इसके खतरे को काफी कम कर सकते हैं।
  • यदि आपको प्रीडायबिटीज है, तो इसका सीधा सा अर्थ है कि आपमें रक्तशर्करा का स्तर ज्यादा तो है लेकिन इतना ज्यादा नहीं है कि आपको यह बीमारी हो ही जायें। इसको कम करने का सबसे सही तरीका है कि आप ज्यादा शारीरिक गतिविधि करें और यदि वजन ज्यादा है तो उसे भी कम करें। इस स्थिति में आपके डॉक्टर, आपको मेटफार्मिन नामक दवा लेने के लिए भी बोल सकते हैं।
  • यदि आप शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं रहते हैं, तो यह आपमें मधुमेह की संभावना बढ़ा सकता है और इसके लिए जरुरी है कि आप अपनी इस आदत से छुटकारा पा लें। लेकिन पहले आप अपने डॉक्टर से सलाह जरूर ले ताकि वह आपको यह बता सके कि आपके लिए कौन सा व्यायाम सुरक्षित है।
  • अगर आपका वजन ज्यादा है, विशेष रूप से कमर के आसपास। हालाँकि यह जरूरी नहीं है कि जिसे टाइप 2 डायबिटीज है, उसका वजन ज्यादा हो ही, लेकिन अधिक वजन डायबिटीज के जोखिम को काफी हद तक बढ़ा देता हैं। विशेष रूप से पेट पर जमा फैट, डायबिटीज के जोखिम को बढ़ाता हैं।
  • यदि आपको हृदय रोग हो।
  • यदि आपको हाई ब्लड प्रेशर हो।
  • हो सकता है कि आपका ‘अच्छा कोलेस्ट्रॉल’ का स्तर कम हो, लेकिन यदि यह 35 mg/dL (milligrams per deciliter) से भी कम, तो इसका स्तर समान्य से बहुत कम है, और इस से आपको टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा हो सकता है।
  • यदि आपमें ट्राइग्लिसराइड का स्तर 250 mg/dL से भी अधिक हो तो भी आपमें टाइप 2 डायबिटीज के शिकार होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
  • अगर गर्भावस्था के दौरान (Gestational diabetes), डायबिटीज हुई हो या बेबी का वजन 9 पौंड से ज्यादा हो तो आपको टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा ज्यादा हो सकता है।
  • अगर किसी महिला को PCOS (पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) हो तो टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा हो सकता है।
  • उम्र बढ़ने के साथ-साथ टाइप 2 डायबिटीज होने का ख़तरा और भी बढ़ जाता है। खासकर यदि आपकी उम्र 45 वर्ष से ज्यादा हो। लेकिन साथ ही उम्र बढ़ने के साथ मधुमेह का होना एक सामान्य बात नहीं है।
जरुरी है कि आप अपने डॉक्टर से मिलकर मधुमेह के होने कारणों के बारे में जानें। यदि आपको इसके कारणों की जानकारी रहेगी तो आप अपने स्वास्थ्य के लिए कुछ ऐसे नियम बना सकते हैं जिनसे आपक डायबिटीज को नियंत्रित रख सकेंगे।
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टाइप 2 डायबिटीज के लिए स्वस्थ खानपान

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31st August, 2015  
foodक्या आप डायबिटीज में उचित खान-पान ले रहें हैं?
डायबिटीज में आप क्या खाते हैं यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। जब भी आप अपने खाने-पीने की सूची बनाते हैं तो इसके लिए कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, फैट और नमक पर विशेष ध्यान दें।
कार्बोहाइड्रट: कार्बोहाइड्रेट आपके शरीर को ऊर्जा देते हैं। यह आपकी रक्त शर्करा को प्रोटीन और फैट से भी ज्यादा तेजी से प्रभावित करता है।
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डायबिटीज उपचार के लिए प्राकृतिक पूरक आहार

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22nd March, 2016  

Madhumeh ke Upchar ke Liye Sabse Achha Prakritik Purak Aahar | मधुमेह के उपचार के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक पूरक आहार | Best Natural Dietary Supplements for Diabetes Treatmentक्रोमियम

डायबिटीज में, क्रोमियम के उपयोग से कई सालों से बहस चल रही है। बहुत से अध्ययनों में कहा गया है कि क्रोमियम सप्लीमेंट डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद करता है। क्रोमियम, ऐसे कारकों की बढ़ोत्तरी करता है, जिनसे ग्लूकोज़ टॉलरेंस में मदद मिलती है। इस से इन्सुलिन को कार्य करने में भी आसानी होती है। लेकिन डायबिटीज के मामले में, क्रोमियम को लेकर बेहद कम जानकारियों के कारण, इसे अभी स्वीकारती नहीं मिली है।

जिनसेंग

हालाँकि इस श्रेणी में बहुत से पौधें आते हैं, लेकिन डायबिटीज के लिए अमेरिकन जिनसेंग ही अध्ययनों में फायदेमंद बताया गया है। अध्ययनों में पाया गया है कि यह शुगर को कम करने में प्रभावी है। यह खली पेट और खाना खाने के बाद ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखती है। इसी प्रकार यह A1c स्तर के नियंत्रण में भी मददगार है। अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि जिनसेंग में ब्लड शुगर को कम करने वाले तत्व बहुत ज्यादा मात्रा में पाए जाते हैं।

मैगनेशियम

हालाँकि, मैगनेशियम और डायबिटीज के बीच में संबंधों पर दशकों से खोज़-बीन चलती आ रही है। लेकिन अभी तक इसके नतीजों पर नहीं पहुंचा जा सका है। वहीं अध्ययनों में पाया गया है कि शरीर में मैगनेशियम की कमी, टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में, ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित कर सकती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि मैगनेशियम की कमी, अग्नाशय में, इन्सुलिन के स्त्राव में दखलंदाजी करती है। जिस से शरीर के उत्तकों द्वारा भी इंसुलिन का प्रतिरोध बढ़ जाता है। अध्ययनों से मिले सबूतों के आधार पर देखा गया है कि मैगनेशियम की कमी, डायबिटीज के कारण होने वाली कुछ और बिमारियों को भी बढ़ावा देती है। एक हालिया विश्लेषण में पाया गया है कि जिन लोगों द्वारा मैगनेशियम की मात्रा ज्यादा ली जाती है, उनमें टाइप 2 डायबिटीज का ख़तरा इतना ज्यादा नहीं होता।
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वैनेडियम

वैनेडियम, एक ऐसा तत्व है जो, जानवरों और पौधों में पाया जाता है। कुछ पुराने शोधों में पाया गया है कि वैनेडियम, यह सप्लीमेंट जानवरों में, टाइप 1और 2 डायबिटीज में, ब्लड शुगर के स्तर को कम करने में मदद करता है। एक हालिया खोज में पाया गया है कि डायबिटीज से पीड़ित व्यक्तियों को जब, वैनेडियम दी गई, तो इससे उनके इन्सुलिन की संवेदनशीलता में कुछ बढ़ोत्तरी हो गई, जिसके बाद उनमें इन्सुलिन को कम करने की जरूरत पड़ी। हालिया खोजकर्ता भी अब शरीर में वैनेडियम के प्रभावों (अच्छे और बुरे दोनों) पर अध्ययन करना चाहतें हैं।

सह-एंजाइम Q10

सह-एंजाइम Q10, जिसे ज्यादातर CoQ10 (ubiquinone and ubiquinol) के तौर पर जाना जाता है, यह एक विटामिन के जैसा पदार्थ है। CoQ10 एक एंटीऑक्सीडेंट के तौर पर कार्य करता है और सेल्स को ऊर्जा बनाने में मदद करता है। यह ज्यादातर समुंद्री खाद्य-पदार्थों में थोड़ी सी मात्रा में पाया जाता है। इसके कुछ अन्य सप्लीमेंट्स टेबलेट और दवाइयाँ भी हैं। हालाँकि, CoQ10’s के, डायबिटीज के लिए पूरक या वैकल्पिक चिकित्सा के संबंध में प्रभावी होने को लेकर प्रयाप्त साक्ष्य नहीं हैं। साथ ही अभी तक CoQ10 का ब्लड शुगर पर प्रभाव भी सामने नहीं आया है।
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टाइप 2 डायबिटीज में नींद न आने की परेशानी और इलाज

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28th January, 2016  
Type 2 Madhumeh ke Rogiyon mein Sone ki Samasyayon ke Liye Sabse Achha Ilaaj | टाइप 2 मधुमेह के रोगियों में सोने की समस्याओं के लिए सबसे अच्छा इलाज| Best treatment for Sleep Problems in Patients with Type 2 Diabetesकिसी भी टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति में, उसका इलाज उनकी अपनी स्थितियों के आधार पर अलग-अलग तरह से किया जाता है।

स्लीप एपनिया

यदि आप स्लिप एपनिया से पीड़ित हैं, तो आपका डॉक्टर आपको वजन घटाने की सलाह भी दे सकता है। क्योंकि वजन घटाने से, आपको आसानी से सांस लेने में मदद मिल सकती है।
इसके अलावा इसका एक और इलाज, कन्टीन्यूस पॉजिटिव एयरवेज प्रैशर (CPAP) है। CPAP मरीज को नाक और मुँह पर एक मास्क पहनाया जाता है। इसमें एक एयर ब्लोअर हवा को मुँह और नाक से अंदर की तरफ भेजता है। इसमें हवा के दबाव को नियंत्रित कर दिया जाता है, ताकि यह सिर्फ ऊपरी वायुमार्ग के तंतुओं को ढ़हने से रोक सके। दबाव सोते समय निरंतर बना रहता है। यह CPAP वायु-मार्ग जब तक लगा रहता है, यह एयरवेज को एक दूसरे के पास आने से रोकता रहता है। लेकिन यदि एक बार CPAP हटा दिया जाए, या इसे ठीक प्रकार से न लगाया जाए तो, व्ही समस्या फिर से आने लगती है।
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पेरीफेरल न्युरोपैथी

पेरीफेरल न्यूरोपैथी, के दर्द के इलाज के लिए डॉक्टर ज्यादातर, साधारण दर्द निवारक दवाइयाँ, जैसे Aspirin या Ibuprofen, Antidepressants जैसे Amitriptyline, या Anticonvulsants जैसे Neurontin, Topamax, याr Gabitri देते हैं। वहीं इसके कुछ अन्य उपचारों में, जैसे Lyrica, lidocaine इंजैक्शन या फिर क्रीम जैसे Capsaicin भी देतें हैं।

रेस्टलैस लेग्स सिंड्रोम

रेस्टलैस लेग्स सिंड्रोम के उपचार के लिए बहुत सी ऐसी दवाइयाँ होती हैं, जिनका प्रयोग किया जाता है। इनमें डोपामाइन एजेंट, स्लीपिंग एड्स, एंटीकंवलसेन्टस, और दर्द निवारक दवाएं होती हैं । वहीं यदि आयरन की कमी है तो आपका डॉक्टर आपको आयरन की गोलियां भी बता सकता है।
अनिद्रा (Insomnia) के उपचार के लिए प्रयोग की जाने वाली कुछ दवाइयाँ
  • बिना तैयारी के लिए ली जाने वाली दवाइयाँ जैसे Antihistamines, Diphenhydramine (बेनड्रील)। ये दवाएं कम मात्रा में ली जाती हैं और सोने की आदत के अनुसार बदली जाती हैं।
  • दवाएं जो सोने कि समस्या के लिए दी जाती हैं उनमें मुख्य हैं Ambien, Belsomra, Sonata, और Lunesta
  • Benzodiazepines दवाई, जो मस्तिष्क और नसों पर काम करती हैं, इसमें कुछ और दवाइयाँ जैसे Valium, Ativan और Xanax शामिल हैं।
  • अवसाद विरोधी (Antidepressants) दवाई जैसे Serzone.

सोने की आदतों में करें सुधार

दवाइयों के अलावा, कुछ और तरीकें जिन से सोने की आदतों में सुधार किया जा सकता है।
जैसे –
  • तनाव मुक्त रहने के तरीके अपनाएं और सांस लेने की सही तकनीकों को सीखें।
  • तनाव मुक्ति के लिए, प्राकर्तिक की आवाजों को सुनें।
  • लगातार व्यायाम करें लेकिन उसका सही समय अपने डॉक्टर से पूछ लें। सोने से कुछ समय पहले व्यायाम न करें।
  • शाम को कैफीन, शराब, या निकोटीन का उपयोग न करें।
  • यदि आपको नींद नहीं आ रही है तो, बेड से उठ जाएं और उस जगह से किसी दूसरे कमरे में चलें जाएं। जब आपको नींद आए तभी उस कमरें में जाएं।
  • बेड को सिर्फ सोने के लिए ही प्रयोग करें उस पर पूरा दिन चढ़ कर न बैठें रहें।

टाइप 2 डायबिटीज और नींद के बीच में कुछ और संबंध

बहुत से अध्ययनों में पाया गया है कि जो लोग पूरी तरह से नींद नहीं ले पातें हैं, उनमें वजन बढ़ने और मोटापा बढ़ने की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं। वहीं जिन लोगों में न सोने की बीमारी बहुत पुरानी होती है, उनमें इन्सुलिन प्रतिरोध की समस्या भी हो सकती है। इसी कारण हाई ब्लड शुगर और डायबिटीज की समस्या पैदा हो जाती है।
कुछ अध्ययनों, में सामने आया है कि नींद न आने की पुरानी बीमारी के कारण एक ऐसा हार्मोन भी प्रभावी हो सकता है, जो हमारी भूख को नियंत्रित करता है। उदाहरण के तौर पर, पर्याप्त नींद न लेने से, एक हार्मोन लेप्टिन का स्तर घट जाता है। यह हार्मोन हमारे शरीर में, कार्बोहाइड्रेट के चयापचय को नियंत्रित करता है। जब हार्मोन लेप्टिन की हमारे शरीर में कमी हो जाती है, तो हमें कार्बोहाइड्रेट की भूख ज्यादा लगने लगती है। जिसके कारण हम कार्बोहाइड्रेट और कैलोरी को ज्यादा मात्रा में ग्रहण कर लेंते हैं।
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मधुमेह रोगियों का नेत्र परीक्षण

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2nd October, 2015  
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Diabetes ke marijon main aankhon ki samasyaon ke liye mahatvpoorn janch | मधुमेह के मरीजों में आँखों की समस्याओं के लिए महत्वपूर्ण जाँच | Important Tests for Eye Problems in Diabetes मधुमेह रोगियों के लिए यह बेहद आवश्यक है कि वह साल में ​एक बार ​​किसी नेत्र-विशेषज्ञ से अपनी आँखों ​की जाँच जरूर करवाएं। समय पर करा ली गई इस जाँच में आँखों के रेटिनोपैथी से प्रभावित होने का पता शुरू में ही लगाया जा सकता है। जब आप नेत्र-विशेषज्ञ के पास इस परीक्षण के लिए जाते हैं तो ​उन्हें अपने मधुमेह के पूरे इतिहास और इसके चलते नेत्र-दृष्टि में आए पूरे बदलावों के बारे में बताएं। आपके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर आपकी दृस्टि का पता लगाने के लिए आपको एक चार्ट पढ़ने के लिए दिया जाएगा। ​चार्ट के बाद ​डॉक्टर आपकी आँखों के रेटिना की जांच नेत्र दर्शक (ओफ्थाल्मोस्कोप) द्वारा करेगा।
हालाँकि ​यह आवश्यक नहीं है कि मधुमेह रेटिनोपैथी की पूरी जानकारी इस सामान्य जाँच में लग जाए। और अगर ऐसा नहीं होता है तो डॉक्टर इसके लिए एक और विशेष परीक्षण भी कर सकता है। ​इस परीक्षण में सबसे पहले आँखों को अंदर से साफ़ तौर पर देखने के लिए एक विशेष प्रकार की आई ड्रॉप का प्रयोग किया जाता है, इस ड्रॉप की मदद से आँखों की पुतलियाँ फ़ैल जाती हैं जिस से एक लेंस और विशेष प्रकाश (स्लिट लैंप​) ​की मदद से रेटिना को बेहद साफ़ तौर पर देखा जा सकता है।
​रेटिना की पूरी जाँच के लिए एक और परीक्षण होता है जिसे फ्लुओरे​सीन एंजियोग्राफी ​ कहा जाता है, जिसके द्वारा रेटिना के रक्त ​वाहिकाओं को भी साफ़-साफ देखा जा सकता है। ​​इस जाँच परीक्षण द्वारा आँखों में मधुमेह के कारण आए बदलावों को आसानी से पता लगाया जा सकता है। इस परीक्षण के लिए एक हाथ की नस में फ्लोरोसेंट ​ पिली डाई​ ​का ​इंजेक्शन दिया जाता है और इसके बाद रेटिना का एक चित्र लिया जाता है, इस चित्र में रक्त वाहिकाओं में पीले रंग की रेखा नजर आ जाती है।
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खुद कैसे करें अपनी रक्त शर्करा की जाँच?

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19th November, 2015  
 Apne Rakt Sharkara ki Janch ka Sabse Achha Tarika kya hai? | अपने रक्त शर्करा की जाँच के लिए सबसे अच्छा तरीका क्या हैं? | What is the Best Way to Check your Blood Sugar?यदि आपको डायबिटीज है, तो यह बहुत जरूरी है कि आपको अपने रक्त शर्करा का स्तर पता हो। इससे आपको अपने खान-पान और दवाइयों के प्रबंधन में काफी मदद मिलेगी। इसके द्वारा आप और आपके डॉक्टर, आपके शुगर लेवल को नियंत्रित कर सकते हैं और डायबिटीज से उत्पन्न होने वाली जटिलताओं को भी रोका जा सकता है। नीचें कुछ तरीके दिए गए हैं जिनके द्वारा आप अपने रक्त शर्करा पर रोजाना नज़र रख सकते हैं :
स्वयं रक्त शर्करा की जाँच – डायबिटीज से पीड़ित मरीजों को दिन में कई बार अपने ब्लड शुगर लेवल की जाँच करनी पड़ती है। इसके लिए बाजार में एक यंत्र या गैजेट उपलब्ध है। यह फ़ोन जैसा छोटा सा आपके हाथों में पकड़ सकने वाला डिवाइस है।
इसके लिए आप एक छोटी सी सुई के माध्यम से अपनी उंगलिओं में चुभोयें, जिससे रक्त बूंद के रूप में आने लगेगा। फिर रक्त की एक या दो बूंद लेकर टेस्ट स्ट्रिप पर डालें। इसके बाद, स्ट्रिप को आप डिवाइस के अंदर डाले, जो आपके रक्तशर्करा के स्तर को मापता है।
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आप इस परिणाम को नोट करके रखें और फिर अपने डॉक्टर को भी बताएँ। इन परिणामों के आधार पर डॉक्टर, आपके आहार व्यायाम और दवाइयों को निर्धारित करता है।
A1c टेस्ट – इस प्रकार के परीक्षण को आपको चिकित्सक के कार्यालय में ही करवाना होता है।इसे साल में, कम से कम दो बार या जैसा आपके चिकित्सक आपको सलाह दें वैसे करवाना होता है।
इस परीक्षण का परिणाम, आपके पिछले 2 से 3 महीने के औसत रक्त शर्करा नियंत्रण को बताता है। इस परीक्षण के परिणाम के आधार पर, आप और आपके चिकित्सक, आपके मधुमेह के उपचार की योजना बनाते हैं। इसी के माध्यम से वह यह भी देखते है कि कितनी अच्छी तरह से यह योजना आपके ब्लड शुगर के लेवल को नियंत्रित करने में सक्षम है और यदि कुछ बदलाव की आवश्यकता होती है तो वह इसी परिक्षण के परिणाम के आधार पर निर्धारित करते हैं।
इस पर भी विचार करें: स्वयं से रक्त शर्करा की जाँच आप रोजाना कर सकते हैं और यह आपके रक्त शर्करा के स्तर के बारे में पूरी जानकारी देने में सक्षम नहीं है। A1C परीक्षण आपको आपके रक्त शर्करा के स्तर के बारे में पूरी जानकारी देता है।
कंटीन्यूअस ग्लूकोज़ मॉनिटरिंग सिस्टम (Continuous Glucose Monitoring System) – कुछ लोग, रक्त शर्करा के स्तर की जाँच के लिए इस तरह के सिस्टम को चुनते हैं। इसके लिए, डॉक्टर आपकी त्वचा के नीचे एक छोटा सा सेंसर रख देते हैं, जो हर पांच मिनट में आपके रक्त शर्करा के स्तर की जाँच करता है। इससे आपको कुछ दिनों तक एक पेजर की तरह रहना पड़ता है और यह डेटा को मॉनिटर तक भेजता है।
आपको इसे पूरे दिन पहनना पड़ सकता है क्योंकि इसके द्वारा आपके पूरे दिनभर में रक्त शर्करा के स्तर की जाँच की जाती है। इसके द्वारा डॉक्टर को आपके रक्त शर्करा के स्तर की पूरी जानकारी मिलती है क्योकि स्वयं से जाँच करने पर, पूरी जानकारी नहीं मिलती।
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उच्च तकनीकी उपकरणों द्वारा डायबिटिज पर नियंत्रण

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23rd January, 2016  
Nayi Uchh Takniki Upkarano Dawara Diabetes per Niyantran | उच्च तकनीकी उपकरणों द्वारा डायबिटिज पर नियंत्रण | New High-Tech Tools to Help Manage Diabetesडायबिटीज के मरीजों के लिए, कुछ ऐसी नई तकनीकों का भी निर्माण किया गया है जिनके द्वारा वह अपनी डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद ले सकतें हैं। इन तकनीकों के द्वारा आप रोजाना न सिर्फ अपने ब्लड शुगर की मात्रा को माप सकतें हैं, बल्कि इसके द्वारा रोजाना के खान-पान और की गई एक्सरसाइज को भी मापा जा सकता है।
कुछ ऐसी ही तकनीकें जो डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होती हैं:
  • स्मार्टफोन, टेबलेट, या कंप्यूटर एप्लीकेशन, इनके द्वारा आप अपने खान-पान, व्यायाम और ब्लड शुगर की गणना कर सकतें हैं।
  • डिवाइस जो हर एक पांच मिनट में आपके ब्लड में शुगर की जाँच कर सकती है।
  • स्मार्ट पम्प जिसके द्वारा आप अपने शरीर को उतनी ही मात्रा में इन्सुलिन दे सकतें हैं जितने की उसको जरूरत होती है।
  • टेक्स्ट, कॉल्स और ईमेल जो आपको आपकी दवाई लेने की याद दिला सकतें हैं।

ब्लड शुगर पैटर्न ट्रैक

ब्लड शुगर के पैटर्न को ट्रैक करते रहने से आपके डॉक्टर को डायबिटीज को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
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आपकी डायबिटीज की जानकारी के लिए, आपका डॉक्टर एक मशीन कन्टीन्यूस ग्लूकोज़ मॉनिटर (CGM) का भी प्रयोग कर सकता है। इस मशीन के द्वारा पूरा दिन हर पांच मिनट में ब्लड शुगर की जाँच की जा सकती है। यह जाँच त्वचा पर पैच चिपका कर छोटे-छोटे रेशों के द्वारा की जाती है। इसका नतीजा आपकी कमर या कलाई पर बंधे मॉनिटर पर वायरलेस तरीके से चला जाता है। इसके अलावा कुछ डिवाइसों के द्वारा आपके ब्लड शुगर के नतीजे को आपके डॉक्टर के ऑफिस में भी वायरलेस सिग्नल द्वारा भेजा जा सकता है। इससे न सिर्फ आप बल्कि आपका डॉक्टर भी आपके खानपान, व्यायाम और सोने के दौरान ब्लड शुगर पर नजर रख सकता है।
नया स्मार्ट इन्सुलिन पम्प, जो CGM पम्प के साथ मिलकर कार्य कर सकता है, यह टाइप 1 डायबिटीज के मरीजों के लिए एक बेहतरीन साधन है।

एप्लीकेशन और क्लिप्स

नए स्मार्टफोन, टेबलेट और कम्प्यूटर में होने वाली एप, आपके लिए अच्छा चुनाव हो सकती हैं यदि आप इन्हें लिख कर रखना ज्यादा पसंद नही करते तो।
यह एप्लीकेशन कुछ इस तरह से आपकी मदद कर सकती हैं:-
  • कैलोरी, कार्बोहाइड्रेट, और डाइट में पोषक तत्वों का होना।
  • रोजाना की जाने वाली एक्सरसाइज और खर्च हुई कैलोरी
  • तनाव का स्तर
  • ब्लड शुगर टेस्ट का नतीजा
डायबिटीज के मरीजों के लिए यह बेहतर होगा कि वह अपने खान-पान की एक डायरी बनाएं। वहीं इसके लिए आप फोन एप भी प्रयोग कर सकतें हैं क्योंकि फोन को आप कहीं भी और कभी भी साथ रख सकतें हैं। इससे आपके लिए अपने खान-पान पर नजर रखनी और भी आसान हो जाती है।
इसके अलावा चिकित्सा जगत में कुछ ऐसे भी गैजेट्स उपलब्ध हैं जिन्हें आप अपनी कलाई या कमर में पहन कर अपनी शारीरिक क्रिया पर नजर रख सकते हैं। इन गैजेट्स के द्वारा आप अपने कदम यहाँ तक कि धड़कन को भी माप सकतें हैं।
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टाइप 2 डायबिटीज की स्क्रीनिंग

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13th April, 2016  
मधुमेह जाँच के लिए टेस्ट
डायबिटीज के जाँच के लिए फास्टिंग प्लाज़्मा ग्लूकोज़ टेस्ट (FPG) और हीमोग्लोबिन A1C Test का इस्तेमाल किया जाता है।
डायबिटीज की जाँच नकारात्मक आए तो?
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अगर आपके डायबिटीज की जाँच नकारात्मक है, तो हर तीन साल के अंतराल पर या डॉक्टर के सुझाव के नुसार, मधुमेह की जाँच करातें रहें। अगर आपको प्री-डायबिटीज हो, और आपके डायबिटीज की जाँच नकारात्माक हो, तो डॉक्टर आपको फिर से जाँच करवाने के लिए बोल सकता है। इसके अलावा, आप अपने वजन और रक्तचाप, को भी नियंत्रित रखें, और लिपिड के स्तर को कम करके, डायबिटीज के खतरे को कम रखें।
डायबिटीज की जाँच सकारात्मक हो तो?
अगर आपके डायबिटीज की जाँच सकारातमक है, तो सही उपचार के लिए कुछ और परीक्षणों की आवश्यकता हो सकती है। डॉक्टर, आपकी रक्त शर्करा का प्रबंधन और गंभीर समस्याओं को रोकने के लिए, आपको कुछ दवाईयों के साथ-साथ, स्वस्थ और संतुलित आहार, रोजाना व्यायाम और अपनी जीवन-शैली में बदलाव का सुझाव दे सकता है।
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टाइप 2 डायबिटीज और इन्सुलिन पंप


Insulin Pump ka Prathamik Uddeshya | इंसुलिन पंप का प्राथमिक उद्देश्य | Primary Purpose of Insulin Pump
यदि आपको टाइप 2 डायबिटीज है, और आप लगातार इन्सुलिन के शॉट्स ले रहें हैं, तो आपको इन्सुलिन पम्प के लिए पहले अपने डॉक्टर से पूछना पड़ेगा।
इन्सुलिन पंप बेहद छोटी, कम्प्युटरीकृत डिवाइस है, जो आपके शरीर को नियमित तौर पर, रेपिड-एक्टिंग इन्सुलिन को निकालने के लिए प्रेरित करता है। इस पम्प में एक छोटी, और लचीली ट्यूब होती है, जिसे केथेटर कहा जाता है। इसके अंतिम छोर पर एक सुईं होती है। इस सुईं को त्वचा से पेट के नीचे पहुंचाया जाता है। इस डिवाइस को एक बेल्ट के तौर पर पहना जा सकता है या फिर जेब में भी रखा जा सकता है।
इस इन्सुलिन पम्प को इस तरह से तैयार किया जाता है, जिससे इन्सुलिन की मात्रा को नियमित तौर पर शरीर में भेजा जा सके। यह बनाई गई योजना के अनुसार 24 घंटे कार्य करता है। इसके अलावा इससे प्रयोग कर्ता खुद भी इन्सुलिन को प्रत्येक पम्प के साथ नियमित मात्रा में भेज सकता है। इसके अलावा प्रयोग कर्ता खुद भी इन्सुलिन की मात्रा को बदल सकता है।
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खाना खाते समय और, पूरी रात इन्सुलिन की थोड़ी-थोड़ी सी मात्रा शरीर में पहुंचती रहती है। जिससे यह हमारे ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखती है। इसे बेसल दर कहा जाता है। खाना खाने के दौरान, इंसुलिन की एक बॉल्स खुराक पम्प के द्वारा शरीर में पहुंच जाती है। आप खुद भी माप सकतें हैं कि आपके कार्बोहाइड्रेट की मात्रा के अनुसार आपको कितनी मात्रा में इंसुिलिन जरूरत है।
जब इन्सुलिन पम्प, का प्रयोग किया जाता है तो इन्सुलिन लेने के बाद आपको दिन में चार बार अपने ब्लड शुगर के स्तर को भी मापना होगा। आप अपने इन्सुलिन की मात्रा निर्धारित कीजिये, और इसे अपनी दिनचर्या, खान-पान और व्यायाम के आधार पर लीजिये।

डायबिटीज में क्यों उपयुक्त माना जाता है इन्सुलिन पम्प

कुछ स्वास्थ्य सलहाकार, डायबिटीज के मरीजों के लिए इन्सुलिन पम्प ही बतातें हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि इसका इन्सुलिन को धीरे-धीरे शरीर को भेजना, उसी तरह से कार्य करता है जैसे हमारे अग्नाशय द्वारा बनाया गया इन्सुलिन करता है। वहीं एक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि इन्सुलिन पम्प डायबिटीज को नियंत्रित करने में सबसे उपयुक्त और सुरक्षित उपचार है।
वहीं इसका एक और लाभ, यह भी है कि यह आपको सिरिंज द्वारा लिए जाने वाले इन्सुलिन से छुटकारा दिला देता है।

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शरीर को कैसे नुकसान पहुंचाती है डायबिटीक न्यूरोपैथी?


Diabetic Neuropathy ke Prakar | डायबिटीक न्यूरोपैथी के प्रकार | Types of Diabetic Neuropathy
डायबिटिक न्यूरोपैथी, शरीर की सभी परिधीय तंत्रिकाओं (फाइबर, मोटर न्यूरॉन्स और स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली) को प्रभावित करती है। डायबिटिक न्यूरोपैथी को इसके अलग-अलग लक्षणों के आधार पर चार भागों में बांटा गया है। न्यूरोपैथी के, यह सभी अलग-अलग प्रकार शरीर के अलग-अलग अंगों को प्रभावित कर उनमें बिमारियाँ पैदा करतें हैं।
Image Source
  1. पेरीफेरल (Peripheral)
  2. ऑटोमेटिक (Autonomic)
  3. प्रोक्सिमल (Proximal)
  4. फोकल (Focal)
परिधीय तंत्रिकाविकृति (Peripheral Neuropathy)
इस तरह की समस्याएं ज्यादातर, पैरों और टांगों में ही आती है। वहीं बेहद कम लेकिन कुछ मामलों में, यह लक्षण बांह, पेट और कमर पर भी नजर आते हैं।
लक्षण जैसे-
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  • झुनझुनी
  • अकड़न (स्थायी भी हो सकती है)
  • जलन (विशेष रूप से शाम को)
  • दर्द
यदि आपकी डायबिटीज नियंत्रण में हो, तो इस बिमारी के शुरुआती लक्षण खुद-ब-खुद नियंत्रण में आ जाते हैं। इसके अलावा इस तरह की परेशानियों से निजात पाने के लिए दवाइयाँ भी होती हैं।
क्या करें?
  • अपने पैरों और टांगों की रोजाना जाँच करें।
  • यदि पैर और टाँगें सूखी हुई महसूस हो तो, लोशन का प्रयोग करें।
  • पैरों के अंगूठों और नाखूनों का विशेष ध्यान रखें और यदि जरूरत हो तो, पोडाइअट्री को भी दिखा सकतें हैं।
  • ऐसे जूतें पहने, जो आपके पैरों में ठीक से आ जाएं। ज्यादातर समय जूते पहन कर रखें ताकि आपके पैरों में चोट न आए या फिर घाव न बनें।
ऑटोनोमिक न्यूरोपैथी
यह न्यूरोपैथी, पाचन तंत्र को प्रभावित करती है, खासकर पेट को। इसके अलावा यह रॉक वाहिकाओं, यूरिनरी सिस्टम, और सेक्स ओर्गन्स को भी प्रभावित कर सकती है।
पाचन क्रिया में समस्या, लक्षण:
  • सूजन
  • दस्त
  • कब्ज
  • हृदय दाह
  • मितली
  • उल्टी
थोड़ा सा खाने के बाद भी पेट ज्यादा भरा हुआ महसूस होना। क्या करें?
आहार को छोटे-छोटे भागों में बाँट लें, और इसके अलावा दवाइयों का भी उचित ध्यान रखें।
रक्त वाहिकाओं पर प्रभाव, लक्षण:
  • खड़े होने के बाद स्तब्ध हो जाना
  • धड़कन बढ़ जाना
  • चक्कर आना
  • लो ब्लड प्रैशर
  • मितली
  • उल्टी
  • थोड़ी ही देर में, सामान्य से ज्यादा भरा हुआ सा महसूस करना।
यदि आपमें इस तरह के लक्षण नजर आ रहें हैं, तो तेजी से खड़े न हों। खास प्रकार की स्टॉकिंग पहने।
पुरुषों में लक्षण- इरेक्शन प्रॉब्लम, ड्राई या एजकुलेशन्स में कमी
इन समस्याओं का उपचार निम्न तरीकों से किया जाता है-
  • पेनिल प्रत्यारोपण या इंजेक्शन
  • वैक्यूम इरेक्शन डिवाइस
  • दवाइयाँ
महिलाओं में इसके लक्षण – योनि स्नेहन में कमी और कामोत्ताप के रूप में नजर आ सकते हैं।
इन समस्याओं का उपचार निम्न तरीकों से किया जाता है-
योनि एस्ट्रोजन क्रीम, स्पोसिटोरिस, और रिंग्स
सेक्स के समय दर्द से राहत के लिए दवाएं
स्नेहक (Lubricants)
यूरिनरी सिस्टम में परेशानी, लक्षण:
  • यूरिन के समय परेशानी
  • सूजन
  • यूरिन लीक होना
  • रात में अधिक बाथरूम जाना
ट्रीटमेंट
  • दवाइयाँ
  • ब्लैडर में, केथेटर डालकर यूरिन को बाहर निकाला (Self-Catheterization)
  • सर्जरी
समीपस्थ न्यूरोपैथी Proximal Neuropathy
इस तरह की न्यूरोपैथी में, दर्द ज्यादातर जांघों, कूल्हों, या नितंबों के एक तरफ होता है, और इसकी वजह से टांगों में भी कमजोरी आ सकती है।
इस तरह की बिमारी से ग्रसित ज्यादातर लोगों को दर्द से राहत पाने के लिए, दवाइयों और फिजिकल थेरेपी की आवश्यकता पड़ती है।
फोकल न्यूरोपैथी Focal Neuropathy
यह न्यूरोपैथी अचानक से सामने आती है, और यह एक ख़ास प्रकार की तंत्रिका को प्रभावित करती है। लक्षण:
  • दो चीजें नजर आना (Double Vision)
  • आँखों में दर्द
  • चेहरे पर एक तरफ पैरालिसिस हो जाना (Bell’s Palsy)
  • शरीर के कुछ हिस्सों, जैसे कमर के निचले हिस्से और टांगों में तेज दर्द होना।
  • छाती या पेट में दर्द होना, जिन्हें कभी-कभी दूसरी बिमारियाँ जैसे हार्ट अटैक या पथरी भी समझ लिया जाता है।
क्या करें?
यदि आपको ऊपर दिए गए लक्षणों में से कोई भी लक्षण नजर आ रहें हैं, तो आप इसके बारे में अपने डॉक्टर से चर्चा करें। फोकल न्यूरोपैथी बेहद दर्दकारी और अप्रत्याशित होती है। इसे पनपने में हफ्ते या महीने का समय लग जाता है। लेकिन इसकी वजह से कोई ज्यादा लंबा और घातक नुकसान नही होता।
डायबिटीज से तंत्रिकाओं को होने वाले अन्य नुकसान
जिन लोगों को डायबिटीज होती है, उन्हें तंत्रिकाओं से सम्बंधित कुछ अन्य परेशानियां जैसे, इन्ट्रप्मेंट सिंड्रोम्स (Entrapment Syndromes) भी हो सकता है।
कार्पल टनल सिंड्रोम, इंट्रप्मेंट सिंड्रोम (Entrapment Syndrome) का सबसे सामान्य प्रकार होता है। इसके सबसे मुख्य कारण, हाथों का सुन्न होना और शरीर में झुनझुनी होता हैं। इसके अलावा कभी-कभी मांशपेशियों में दर्द और कमजोरी भी हो सकती है।
यदि आपको लगता है कि आपको इनमें से किसी भी प्रकार की तंत्रिका सम्बंधित समस्या है तो आप इसके लिए अपने डॉक्टर से भी बात कर सकतें हैं।







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