धर्मस्य मूलं अर्थ|-Prosperity depends on religiosity

 वेदों के साहित्य में लिखा है धर्म सच्चाई है| तब अर्थ आता है जिसका मतलब है माध्यम। धन एक माध्यम है| तब इच्छाएं आती है| और फ़िर मोक्ष आता है| इस तरह धर्मस्य मूलं अर्थ| इसका अर्थ है धार्मिकता समृद्धि पर निर्भर करती है| यदि सभी समृद्ध होंगे तो कोई भी चोरी नहीं करेगा| धर्म का आधार समृद्धि है| और धन का आधार राष्ट्र है| इस तरह ये सब सम्बंधित है| धन महत्वपूर्ण है परन्तु धन केवल एक साधन है| यह सब कुछ नहीं है| धन को कभी भी ख़ुशी से नहीं जोड़ना चाहिए| यदि आप देखो तो पाओगे यहाँ तक कि गरीब से गरीब लोग भी खुश होते हैं | वास्तव में वे ज्यादा खुश हैं| धन सुरक्षा की एक गलत धारणा बन जाता है| आप सोचते हो यदि आपके पास धन है तो सब कुछ है। 
धन का ख्याल आराम के लिए है| आप धन क्यों चाहते हो? आराम के लिए| परन्तु धन आपको केवल एक तरह का आराम दे सकता है| आराम के तीन प्रकार हैं| शरीरिक आराम,भावात्मक और मानसिक आराम, और अध्यात्मिक आराम यां आन्तरिक आराम| जबकि धन केवल एक तरह का आराम दे सकता है| यह भावनात्मक और अध्यात्मिक आराम नहीं देता| यह आवश्यक है| जैसे हम जीवित रहने के लिए खाते हैं, परन्तु यदि हम केवल खाने के लिए जीवित रहे (हंसी) तो हमारे साथ बुनियादी तौर पे कुछ गलत है|
ग्रन्थ और प्राचीन लोग बड़ी खूबसूरती से बताते हैं कि आपको अपने धन को इस्तेमाल कैसे करना चाहिए। आप धन को २०% के पांच भागों में बाँट लो| एक भाग आप अपने इस्तेमाल के लिए रखो| एक भाग आप बचा लो| २०% आप तुरंत ज़रुरतों पर खर्च कर लेते हो| २०% आप परिवार के लिए खर्च करते हो जिससे मेरा मतलब है तत्काल जरूरतों के लिए| २०% आप समाज के लिए इस्तेमाल करते हो| एक वह है जिसे आपद धन कहतें हैं जो आपातकालीन,भविष्य की जरूरतों के लिए होता है| २०% जो आप बचाते हो, उसे बाद में अपने मित्रों,परिवार या अपने वंशजों को दे देते हो| 
एक और विचारधारा है जो कहती है १०% दान करो| ३०% बचत करो| ६०% को जैसे चाहो इस्तेमाल करो|
मैं कहूँगा आपको १०% भी दान देने की जरुरत नहीं है| कम से कम २% या ३% अपनी आमदनी से अलग रख दो| यदि आप बिलकुल भी दान नहीं देते तो आपका पैसा कचेहरी में मुकद्दमों और अस्पतालों में खर्च होगा| इसलिए आपके धन का कुछ हिस्सा २% या ३% अलग रखा जाना चाहिए| यहाँ तक कि १% भी चलेगा| २% फिर ३| २ से १०%दुनिया के लिए अलग रखो| तब आपके मन में लालच नहीं आएगा| लालच आदमी को खत्म करता है और बाद में उसके व्यापर को भी खत्म कर देता है|
परन्तु लक्ष्य ठीक है| आपके पास लक्ष्य होना चाहिए| आप में और धन कमाने की कामना होनी चाहिए| और अधिक धन बनाना एकदम गलत नहीं है| धन कमाओ| समझ गए आप?इस तरह से धन के लिए संतुलित रवैया होना चाहिए| धन ही जीवन में सब कुछ नहीं होना चाहिए| यह आपको बनाये रखने के लिए और शरीर को आराम देने के लिए होना चाहिए| यह केवल आध्यात्मिकता है जिससे पूर्ण विश्राम मिलता है| और यदि मानसिक और अध्यात्मिक आराम होगा, जब आप ईश्वर से जुड़े हों तो आप धन के बारे में सोचते भी नहीं| चीजें अपने आप आती हैं| 
स्थान का भाव अधिक सात्विक,अधिक अनुकूल और प्रकृति के साथ लय में होता है| हम केवल योजना बनाते हैं और बाकि सब बातो का ध्यान अपने आप रखा जाता है| सभी ने थोड़ा थोड़ा कुछ करना शुरू किया| और यह जगह सुंदर बन गई। इसे ही सिद्धि कहतें हैं| सिद्धि का मतलब है आपको जो चाहिए समय में मिल जाता है|
भारत में एक कहावत है - आप बादाम खाना चाहते हो और ये आपको तब मिलते हैं जब आपके सारे दांत गिर जाते हैं| आप बादाम के लिए प्रार्थना करते हो और जब आपको बादाम मिलते हैं आपके दांत जा चुके होतें हैं| इसका कोई फायदा नहीं| इस तरह सिद्धि का मतलब है समय से पहले जरूरत से ज्यादा मिल जाना| 
हम कभी यह चिंता नहीं करते कि काम कैसे होगा? इसे ही सिद्धि कहते हैं। जब आध्यात्मिक उर्जा होती है तो काम सहजता से ही पूर्ण होते चले जाते हैं। इस आत्म विश्वास के साथ चलो| पर हमे ज़्यादा हवा में भी नहीं रहना चाहिए। थोड़ा सा व्यवहारिक भी होना चाहिए| जब तक आप उस अंदरूनी अध्यात्मिक निर्भरता,अध्यात्मिक ऊंचाई तक नहीं पहुँच जाते,आपको तर्कसंगत होना चाहिए,और तर्कसंगत तरीके से जागरूक होकर आपको पैसों का प्रबंध करना है। और यह आप कैसे कर सकते हो? जब एक पैर नीचे जमीन पर होगा एक उपर उठा होगा| इस तरह यह एक नाच की तरह है| नाच कैसे होगा? यदि दोनों पैर कीचड़ में दबे होंगे तो क्या आप नृत्य कर सकते हो? और यदि दोनों पैर उपर हवा मैं होंगे तो भी आप गिर जाओगे| दोनो परिस्थितियों में नाच नहीं हो सकता| नाच तभी हो सकता है जब एक पैर नीचे जमीन पर होगा और दूसरा उपर हवा में| यही सम्पूर्ण ज्ञान है - व्यवहारिक लेकिन सूक्ष्म,अध्यात्मिक दृष्टिकोण से|
परन्तु कुछ लोगों को देखा है जो बहुत अधिक काल्पनिक होतें हैं| वे कोई काम नहीं करते परन्तु बैठे रहतें हैं,'मुझे  मिलियन  मिलियन  चाहिए|' वे थोड़े पैसों के लिए भी नहीं सोचते| हैं| हर दिन इसके लिए प्रार्थना करते हैं| कुछ देर बाद आप जाते हो,खाना पकाते हो और भूल जाते हो| यह सही नहीं है|
इस संतुलन को जानो|

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