नेट न्यूट्रैलिटी की मांग के बीच फ्री बेसिक्स के मुद्दे-Net Nutraliti issue between the demands Free Basics


नेट न्यूट्रैलिटी की मांग के बीच फ्री बेसिक्स के मुद्दे पर हुई चर्चा आम लोगों के पैसे से बना नेटवर्क है इंटरनेट, इस पर किसी का एकाधिकार सही नहीं 


नेट न्यूट्रैलिटी का विरोध व फ्री बेसिक्स को बढ़ावा

सवाल-जवाब 

एक नई शुरुआत

लेटलतीफी से हुआ नुकसान दूरसंचार सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम सबसे अहम है।  इस मामले में भारत की लेटलतीफी का खामियाजा यहां के लोगों को ज्यादा कीमत देकर भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका के पास असीमित मात्र में स्पेक्ट्रम मौजूद है। जबकि भारत के पास ये बेहद सीमित मात्र में है। माल कम हो तो बोली के दौरान कीमत ऊपर जाना तय है। मोबाइल कंपनियों ने भी भारी रकम खर्च कर स्पेक्ट्रम खरीदा है। नतीजतन, आम लोगों को भी टेलीकॉम सेवाओं के लिए ज्यादा दाम खर्च करने पड़ रहे हैं। 


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नेट न्यूटैलिटी (नेट निरपेक्षता) ही वह जरिया है जिससे इंटरनेट पर आम लोगों को अभिव्यक्ति की आजादी मिलती है। इसमें किसी तरह के बदलाव का सीधा असर रचनात्मकता पर पड़ेगा। नई कंपनी बनाने की स्टार्ट-अप संस्कृति को भी धक्का लगेगा। इसके अलावा पहली बार उपयोग वाले नेट यूजर का दायरा सीमित रह जाएगा और वह अन्य प्लेटफॉर्म पर नहीं जाएगा। जबकि इंटरनेट सबका नेटवर्क है। इस पर किसी एक का अधिकार नहीं है और न ही यहां किसी को प्राथमिकता दी जा सकती है। 
मुफ्त में नहीं मिलता कुछ
फ्री बेसिक्स जैसी सेवा इंटरनेट पर एकाधिकार को बढ़ावा देगी। अभी भले ही कोई कंपनी मुफ्त में सेवाएं देने का दावा करे, लेकिन बाद में इसकी कीमत उपभोक्ताओं को ही चुकानी पड़ेगी। क्योंकि मुफ्त दिखने वाली वस्तु आखिर में महंगी साबित होती है। दरअसल, इंटरनेट आम लोगों के पैसे से बना नेटवर्क है। यह एक बाजार की तरह है जहां लोग अपना उत्पाद बेचते या प्रदर्शित करते हैं और पसंद आने पर उसकी खरीदारी की जाती है। जबकि फ्री बेसिक्स सेवा इसके विपरीत है। यह चुनिंदा लोगों से ही खरीदारी का विकल्प उपलब्ध कराती है। भले ही इसके लिए आपको ज्यादा कीमत अदा न क्यों न करनी पड़े।राजस्व पर है सबकी नजर फेसबुक समेत दुनिया की बड़ी कंपनियों की नजर भारत पर टिकी है। इसकी वाजिब वजह भी है। पिछले एक साल में ही इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों में 10 करोड़ नए नाम और जुड़ गए है। भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है। हर कोई यहां आकर मुनाफा काटना चाहता है। मौजूदा सूरत इशारा करती है कि ‘बड़े खिलाड़ी’ अब नए लोगों को मौका नहीं देना चाहते हैं। अगर ऐसा हुआ तो इंटरनेट का विकास तो रुकेगा, साथ ही लोगों की जेब भी ज्यादा कटेगी। बाजार में ज्यादा कंपनियां मौजूद होंगी तो सेवाएं खुद-ब-खुद सस्ती होती जाएंगी। कुछ कंपनियों का एकाधिकार होने की दशा में ऐसा मुमकिन नहीं होगा।
सवाल :
 फेसबुक का दावा है कि उसने फ्री बेसिक्स सेवा में कई देशों की मोबाइल कंपनियों को जोड़ लिया है। भारत में किसी कंपनी पर कोई पाबंदी नहीं है, साथ ही इसके जरिये वह रोजगार के अवसर भी पैदा करेगी ? 
जवाब : 
भारत सबसे बड़ा बाजार है और सभी की नजर अधिक से अधिक उपभोक्ताओं को अपने कब्जे में करने की है। इनका यह दावा ज्यादा ठीक नहीं लगता। क्योंकि कोई कंपनी किसी दूसरी कंपनी से समझौता करेगी तो शर्ते कुछ होंगी और जब तीसरी या चौथी कंपनी से समझौता करेगी तो वह शर्ते बदल सकती हैं। 

सवाल : 
एकाधिकार होने से प्राइवेसी लीक होने का खतरा बढ़ेगा और इससे साइबर क्राइम में भी इजाफा हो सकता है? 
जवाब : 
देखिए इस क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियां काफी प्रतिष्ठित हैं और वह अपने स्तर से साइबर क्राइम जैसा कोई काम नहीं करेंगी। हां वह आपके द्वारा उपलब्ध डाटा का प्रयोग कंपनियों को दे सकती हैं। जिसका प्रयोग वह मार्केटिंग में करके फायदा उठा सकती हैं। बाकी साइबर क्राइम जैसा कोई मामला इतनी प्रतिष्ठित कंपनी नहीं करेंगी।

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