Our instincts are just based on what the person is identified .जैसी हमारी वृत्तियां होती हैं, उसके आधार पर व्यक्ति को पहचाना जाता है।

व्यक्तित्व विकास चिंतन, व्यवस्था और प्रस्तुति-ये विकास के कारण बनते हैं और चिंता, व्यथा और प्रशस्ति-ये अवरोध के कारण बनते हैं। चिंतन करना पहली बात है। हम किसी भी बात को स्वीकारें तो पहले चिंतन करें, केवल अंधानुकरण न करें। मनुष्य व्यथा की बात पग-पग पर प्रकट करता है, पर व्यवस्था पर ध्यान नहीं देता। महत्वपूर्ण सूत्र है कि शिकायत या व्यथा ही प्रकट नहीं करे, व्यवस्था भी करें। मनुष्य जब तक जिंदा है तब तक शिकायत मरेगी नहीं। आदमी के साथ-साथ चलेगी। जहां अपूर्णता है वहां शिकायत के लिए सदा अवकाश है। प्रशस्ति की बात बहुत होती है। जो धार्मिक होगा वह धर्म का बहुत गुणगान करेगा, धर्म को ही सब कुछ बताएगा। अर्थशास्त्री कहेगा कि सारा समाज अर्थव्यवस्था के आधार पर चल रहा है। अर्थव्यवस्था नहीं होती तो समाज कभी चल नहीं पाता। जो जिस विषय का व्यक्ति है वह उस विषय की प्रशस्ति करता है, पर सबकी अपनी-अपनी सीमाएं हैं। आज भौतिक समस्याओं पर बहुत ध्यान केंद्रित किया जाता है, पर समस्याओं को पैदा करने वाली जो मनोवृत्ति है उसकी उपेक्षा की जाती है। आंतरिक समस्या पर जब तक ध्यान नहीं दिया जाता तब तक मनुष्य शांति से नहीं जी सकता और न ही समस्याओं का समाधान ही होता है। मनुष्य में प्रदर्शन की भावना है, वह बुद्धि के साथ जुड़ी हुई है। यह मानसिक समस्या है। वस्तु का प्रदर्शन बाहरी बात है, किंतु प्रदर्शन की मनोवृत्ति आंतरिक समस्या है। आर्थिक विकास के लिए आर्थिक प्रतिस्पर्धा का सूत्र बन गया। 1 विकास के लिए स्पर्धा आवश्यक भी है। विकास और स्पर्धा, दोनों साथ-साथ चलते हैं। यदि प्रतिस्पर्धा और विकास मनुष्य को केंद्र में रखकर होता है तो कोई अनिष्ट परिणाम नहीं आता, किंतु जहां केंद्र में पदार्थ आकर बैठ जाता है और उसेभोगने वाला मनुष्य केंद्र से हटकर परिधि में चला जाता है वहां सारी समस्याएं पैदा होती हैं। आज मनुष्य कहीं और किसी केंद्र में नहीं है। सर्वत्र पदार्थ ही केंद्र में बैठा है। चैतन्य केंद्र में नहीं है। जड़ है केंद्र में। प्रतिस्पर्धा और प्रदर्शन की बात एक सीमा तक मान्य हो सकती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि आदमी समाज में जीता है, वह सामाजिक व्यक्ति है, वीतराग नहीं है। अपने भीतर कौन कैसा है, यह पता चलना तो बहुत कठिन बात है, किंतु व्यवहार जैसा सामने आता है, जैसी हमारी वृत्तियां होती हैं, उसके आधार पर व्यक्ति को पहचाना जाता है। 

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