सहिष्णुता का अर्थ

सहिष्णुता सहिष्णुता का अर्थ है-सहनशीलता या क्षमाशीलता। निंदा, अपमान और हानि की स्थितियों में अपराध करने वाले के प्रति दंड देने का भाव न रखना और अन्य लोगों के धार्मिक कर्मकांडों, खान-पान और रीति-रिवाजों को सम्मान देते हुए उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करना सहिष्णुता है। संसार में जितने भी महापुरुष हुए हैं, सहिष्णुता उनका विशेष गुण रहा है। मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं। इनमें क्षमा का मुख्य स्थान है। एक अन्य धर्मग्रंथ के अनुसार क्षमा प्राणियों का उत्तम गुण है। किसी व्यक्ति द्वारा किए गए र्दुव्‍यवहार, शारीरिक कष्ट या आर्थिक हानि से मन में क्रोध उत्पन्न होता है, जो शब्दों में प्रकट कर दिया जाता है या प्रतिक्रिया स्वरूप मानसिक या शारीरिक कष्ट के रूप में प्रकट होता है। 1 सज्जन व्यक्ति अपने विरुद्ध किए गए अपराध को भूल जाते हैं और क्षमा प्रदान कर देते हैं। परस्पर एक दूसरे के अपराध को क्षमा करने की उदारता, हममें होनी ही चाहिए। किसी भी व्यक्ति के प्रति जाने-अनजाने में हुए र्दुव्‍यवहार के लिए क्षमा मांगने से एक-दूसरे के प्रति मन में पैदा हुई मलिनता सदा के लिए समाप्त हो जाती है। महाभारत के अनुसार क्षमारूपी गुण सबको वश में कर लेता है। क्षमारूपी तलवार जिसके हाथ में है उसका दुर्जन क्या बिगाड़ेगा? महाभारत में कहा गया है कि क्षमा को दोष नहीं मानना चाहिए, यह निश्चय ही परम बल है। क्षमा निर्बल मनुष्यों का गुण है और बलवानों का आभूषण। जैसे तृणरहित स्थान में जलती हुई अग्नि अपने आप शांत हो जाती है, उसी प्रकार क्षमावान व्यक्ति के साथ बैर रखने वाले का बैर भी कुछ हानि नहीं पहुंचा सकता है। सहिष्णु स्वभाव वाले लोगों को लोग निर्बल मान लेते हैं और उनके क्षमाशीलता के गुण को भीरुता मानते हुए अवगुण समझने लगते हैं, परंतु यह परम बल है, क्योंकि केवल शक्तिशाली व्यक्ति ही क्षमा कर सकता है। ऋग्वेद के एक मंत्र का भावार्थ यह है कि विश्व के समस्त निवासियों के संकल्प समान हों। उनके मन व भावनाएं समान हों। यदि उनके विचारों और भावनाओं में समानता होगी, तो सहिष्णुता स्वाभाविक रूप से प्राप्त हो सकती है। सहिष्णुता हमारी संस्कृति के रोम-रोम में व्याप्त है। सहिष्णुता से ही हम राष्ट्र और विश्व में प्रेम और बंधुत्व का प्रसार कर सकते हैं।

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