नशा का व्यसन भले तत्काल सुख दे, पर अंततः पतन का कारण बनता है।-Opiate addiction even give immediate pleasure, but eventually causes the collapse.

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पर आ सको
प्राचीन काल में राजा सर्वमित्र के शासन काल में महात्मा बुद्ध बोधिसत्व-शरीर में थे। उन्होंने विनम्रता, उदारता, क्षमाशीलता और दान तथा सदाचार के बल पर शक्रपद प्राप्त कर लिया था। राजा सर्वमित्र को मदिरा पीने का व्यसन था। एक समय राजा पान गृह में अधिकारियों के साथ बैठा हुआ था; मदिरापान का क्रम चलने वाला ही था कि लोग चौंक उठे। एक साधु पुरुष राजा के सिंहासन के सामने खड़े होकर कहने लगा, इस पात्र में सुरा भरी हुई है। इसका मुख पुष्पों से ढका है; इसे कौन खरीदेगा? उसके बाएं हाथ में सुरा-पात्र था।
राजा ने उठकर कहा, आप कोई बहुत बड़े मुनि हैं, आपके नेत्रों से चंद्र ज्योत्सना की तरह दया उमड़ रही है। अद्भुत तेज है आपका! साधु ने कहा, तुम ठीक समझते हो, लेकिन तुम्हें रोग-शोक का भय न हो, तो इसे खरीद लो।
सर्वमित्र ने कहा, महाराज! आप तो विचित्र ढंग का सौदा कर रहे हैं; सब अपनी वस्तु की प्रशंसा करते हैं, पर आप अपनी वस्तु के दोष प्रकट कर रहे हैं। साधु ने जवाब दिया, सर्वमित्र! इसमें विषमयी मदिरा है। जो पीता है, वह वश में नहीं रहता। यह नरक में ले जाती है। राजा ने कहा, भला, इसका पान ही कोई क्यों करेगा? आपने अपने सदुपदेश से मेरी आंखें खोल दीं। आपने मुझे उस तरह शिक्षा दी है, जिस तरह पिता पुत्र को, गुरु शिष्य को और मुनि जिज्ञासु को देते हैं। मैं अब कभी मदिरा-पान नहीं करूंगा। आपके व्यक्तित्व को प्रणाम करते हुए मैं आपको पांच गांव, सौ दासियां और अश्वयुक्त दस रथ भेंट करता हूं।
सर्वमित्र! मुझे किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है। मेरे पास तो स्वर्ग का वैभव है। साधुवेषधारी बोधिसत्व ने स्पष्ट किया।


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