सद्गुणी व्यक्ति अपने गुणों का प्रदर्शन नहीं करते। वे चुपचाप काम करते हैं।Its properties do not exhibit virtuous person . They work quietly .


एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि मानव शरीर के वे पांचों तत्व ही आपस में उलझ बैठे, जिनसे इस शरीर का निर्माण हुआ है।
वायु ने बहस की शुरुआत करते हुए कहा, मैं सभी पांचों में सबसे बड़ा हूं। मैं न आऊं, तो श्वास हीन होकर शरीर एक क्षण में ही शांत हो जाए। उसका तत्काल अंत हो जाएगा। यह सुनकर पृथ्वी ने कहा, अरे, मेरे कारण तो यह शरीर खड़ा दिखता है। इंद्रियों का आकार न हो, तो तुम सब अपनी अभिव्यक्ति भला कैसे कर सकोगे?
इस बहस में जल-तत्व भी चुप न बैठा। उसने कहा, जीवन का आधार तो मैं ही हूं। अगर शरीर में रस न हो, तो सब कुछ पलक झपकते समाप्त। अग्नि ने अब ठहाका लगाया और कहा, अरे, मेरी क्षमता तथा महत्व का अनुमान तो तुम लगा ही नहीं सकते। मैं न रहूं, तो यह शरीर क्षण मात्र में बर्फ हो जाए। आकाश-तत्व ने भी बड़ी हेकड़ी से कहा, मेरी उपयोगिता का मूल्यांकन तुम सबकी पहुंच से परे है। तुम लोग सोच ही नहीं सकते मेरी उपयोगिता। समस्त सूक्ष्म शक्तियों का संचालन तो मैं ही करता हूं। शब्द मेरी तन्मात्रा है, मैं न रहूं, तो संसार खामोशी में डूबा समुद्र लगने लगे।
आत्मा चुपचाप बैठी यह संवाद सुन रही थी। उसने कुछ न कहा। पांचों तत्वों में जब कलह बढ़ने लगी, तो उससे रहा न गया। उसे घुटन होने लगी। उसकी घुटन इस कदर बढ़ी कि अनायास ही वह शरीर से बाहर आ गई। पांचों तत्व भी उसके पीछे-पीछे ऐसे चल पड़े, जैसे मधुमक्खियों के छत्ते से उनकी रानी चल देती है, तो सारी मधुमक्खियां उसके पीछे-पीछे चल देती हैं। आत्मा को तो यह बोध भी नहीं था कि उसकी अनुपस्थिति में क्या हुआ है। विधाता ने कहा, जो महत्वपूर्ण है, वह शांत और अविचल रहता है।

सद्गुणी व्यक्ति अपने गुणों का प्रदर्शन नहीं करते। वे चुपचाप काम करते हैं।

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