सुखी होने का एकमात्र उपाय-The only way to be happy

मृगारमाता विशाखा के केश और वस्त्र भीगे हुए थे। उनके मुंह पर उदासी और मन में खिन्नता थी। जब वह भगवान बुद्ध के पास गईं, तो तथागत ने इसका कारण पूछा। विशाखा ने कहा, मेरे पौत्र का देहांत हो गया है, इसलिए यह शोक आचरण है। बुद्ध ने पूछा, श्रावस्ती में इस समय जितने मनुष्य हैं, तुम उतने पुत्र-पौत्र चाहोगी?

हां भंते! विशाखा का उत्तर था। तथागत ने अब कहा, नगर में नित्य कितने मनुष्य मरते होंगे? विशाखा समेत वहां उपस्थित जन इस प्रश्न से चकित हुए। फिर भी वह बोली, प्रतिदिन कम से कम दस मरते हैं। बुद्ध ने फिर पूछा, तो फिर तुम प्रतिदिन भीगे केश और वस्त्र में ही रहती होगी?

नहीं भंते! केवल उस दिन भीगे केश और भीगे वस्त्र की आवश्यकता है, जिस दिन परिजन का देहावसान होता है। भगवान ने कहा, अब स्पष्ट हो गया कि जिसके सौ प्रिय अपने (संबंधी) हैं, सौ दुख होते हैं उसे; जिसका एक प्रिय-अपना नहीं है, उसके लिए जगत में कहीं भी दुख नहीं हैं, वह सुख का बोध पाता है।

मैं भूल में थी, भंते! मुझे प्रकाश मिल गया, विशाखा ने प्रसन्न होते हुए कहा। बुद्ध ने कहा, इसका अर्थ यह नहीं है कि किसी की भी मृत्यु पर शोक व्यक्त न किया जाए। अपने सगे-संबंधियों की मृत्यु पर दुखी होना स्वाभाविक है। वह व्यक्त भी होता है, पर स्वयं पर नियंत्रण रखना चाहिए। तब विह्वल होने से बचा जा सकता है।

विशाखा ने पूछा, यह कैसे संभव है भंते? इस पर बुद्ध ने कहा, जगत में सुखी होने का एकमात्र उपाय यह है कि किसी को भी प्रिय या अपना न मानें, उससे आकांक्षा न पालें, ममता, शोक, मोह और राग से रहित हों। यदि आप सुखी रहना चाहते हैं, तो कहीं भी संबंध न स्वीकार करें

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