Life Conflict-जीवन संघर्ष

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संघर्ष जीवन का अर्क है। संघर्षपूर्ण जीवन में केवल दो ही संभावनाएं रहती हैं। प्रथम संघर्षो से तिल-तिल टूटकर, छितराकर समाप्त हो जाना। दूसरी संभावना यह कि जितना कटु व प्रखर जीवन जीना पड़े, वह श्रेष्ठ बनने की दिशा में एक वरदान सिद्ध हो जाए। जीवन में कभी-कभी संघर्ष के क्षण, विपदा और विडंबनाओं के क्षण एक ऐसे बवंडर की तरह आते हैं कि आस्था और अस्तित्व के वट वृक्ष की जड़ें उखड़ने लगती हैं। अटूट आत्मबल और अडिग आस्था के अभाव में जीवन रूपी वट वृक्ष अंदर से खोखला हो जाता है। परिणामस्वरूप बवंडर उसे उखाड़ ले जाता है। अपनी आस्था और अपने अस्तित्व को सक्षम बनाने का संकल्प लेने के लिए इतना परिश्रम करना पड़ता है कि भीषण से भीषण बवंडर भी उसे उखाड़ नहीं पाते। यदि वह उखड़े भी तो ऐसे उखड़े कि बवंडर भी थरथरा जाए। किसी संकल्पजीवी और संघर्षजीवी से पाला पड़ने पर यही होता है। हमें एक दूसरे की आस्था को अपराजेय बनाने में योगदान करना चाहिए। महान बनने का संकल्प कठिन जीवन संघर्र्षो के कंकरीले-पथरीले दुर्गम मार्र्गो पर होते हुए आगे बढ़ने पर ही पूर्ण होता है, किसी की शरण में जाने पर नहीं। आत्मीयता और संकल्प जीवन को दिशादृष्टि देते हैं। साधना, संकल्प और प्रतिभा कभी न कभी रंग लाती है। संकट और परीक्षाएं यदि जीवन में बार-बार न आएं, तो इनकी पहचान और अस्तित्व ही न बचे। संघर्ष में तपकर महानता के तत्व मिलते हैं। प्रतिकूलताएं विष की तरह है। इन्हें अमृत बनाकर पान करने वाले महादेव बनते हैं। परिस्थितियों की प्रतिकूलताओं के बीच मनुष्य जब भी अंतिम रूप से निराश होता है, तो अपने आचरण विहीनता के कारण होता है। चुनौती से गुजरे बिना कोई अपने आंतरिक स्वरूप का साक्षात्कार नहीं कर पाता। मानवीय संवेदना और जिजीविषा जितनी भीतर शेष रह जाए, वही वास्तविक पूंजी है। जिसे जितने अधिक कष्ट मिलते हैं, वह उतना ही बड़ा हो जाता है। जो सुंदर और मूल्यवान है, उसकी खोज रखने का प्रयत्न अद्भुत है। दुखों और कष्टों को धिक्कारने के बजाय इन्हें अमूल्यनिधि आत्मा की पूंजी मानकर अपने भीतर एकत्र करना पड़ता है। अस्तित्व को नकार देने वाली सारी स्थितियों का सामना करने वाले प्रतिदिन नहीं जन्म लेते। जीवन की कुरूपता में छिपे सुंदर कणों को सामने लाना अनूठा संघर्ष है।

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