इसी जन्म में और यहीं मोक्ष
motivation/ins-06-06-2014
इसी जन्म में और यहीं मोक्ष
मुक्ति कोई ऐसी अवस्था नहीं है जिसे मृत्यु के बाद ही प्राप्त किया जाए। न ही वह कोई ऐसा अनुभव है जिसकी प्राप्ति किसी दूसरे संसार में होगी। यह पूर्ण चेतना और समवृत्ति की एक अवस्था है, जिसका अनुभव इस जीवित शरीर को धारण किए हुए ही इसी संसार में अभी ही किया जा सकता है। अपने स्व के साथ एकीकृत होकर इस उच्चतम सत्य का अनुभव कर सकें तो आनंद का स्वरूप उस आत्मा के लिए किसी और उपलब्धि की आवश्यकता ही नहीं होती।
दी गई वस्तु या रकम की मात्रा से ज्यादा उसे देते समय मन में आया भाव मायने रखता है। प्रचुर दान सेे अधिक लोगों की सेवा सहायता तो हो सकती है, लेकिन मन में आया उदात्त और पवित्र भाव नहीं आए तो वह किसी को भी आंतरिक रूप से निहाल करता है। राम के सेतुबंध के समय एक गिलहरी के अपने बालों में रेत भर कर लाने और उसके समुद्र में डालना भी महान प्रयोजनों के समान ही अध्यात्म भाव से देखा गया है।
राम को पाकर विश्वामित्र स्वयं बहुत अमीर हो गए थे। संन्यास में भी परमात्मा मिलें तभी संन्यास सार्थक है। परमात्मा जब भी मिलते हैं तो वह अवस्था धन्य हो जाती है। एक साधुता तब सार्थक हुई जब उसे भगवान मिले, एक पंडित को पांडित्य तब मिला जब उसे परमात्मा मिले। वैराग्य तब सार्थक होगा जब भगवान मिलें। अपूर्णता तब तक रहेगी जब तक भगवान नहीं मिलेंगे। भगवान के मिलते ही आप कितने ही अकिंचन हों मालामाल हो उठेंगे।
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