हमारी समझ उसकी समझ से बेहतर नहीं हो सकती।

motivation-ins 06-05-2014
मानवीय जीवन घटनाओं से भरा हुआ है। या कहें कि रोज हमारे साथ घटने वाली घटनाएँ ही जीवन हैं। इन घटनाओं को हम दो भागो में बाँट सकते हैं। अच्छी और बुरी। अच्छी घटनाएँ हमारे सुख की कारक होती हैं तो बुरी घटनाएँ दुःख की।


इन दैनिक घटनाओं को हम एक अन्य रूप में भी विभाजित कर सकते हैं। एक वे घटनाएँ जो हमारी इच्छा के अनुरूप घटित होती हैं? और दूसरी वे जो हमारी इच्छा के विपरीत घटित होती है। जाहिर सी बात है जो घटनाएँ हमारी इच्छा के अनुरूप घटित होती हैं, उसमें हम खुश, प्रसन्न रहते हैं।
वहीं इच्छा के विपरीत घटित होने पर खिन्न हो जाते हैं, विचलित हो जाते हैं। सोचने लगते हैं कि ये सब मेरे साथ ही क्यों होना था? यहाँ पर समझने वाली बात यह है कि जो घटनाएँ आपकी इच्छा के अनुसार नहीं घटी हैं, उसे उस सर्वशक्तिमान परमपिता परमेश्वर की इच्छानुसार घटित हुआ मानकर हमें जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए।


हो सकता है जो हमें बुरा लगता है वह उसके दृष्टिकोण से अच्छा हो। हम सामान्य जन उसमें छिपी अच्छाई को देख नहीं पाते और यह मानने लगते हैं कि हमारे साथ हमेशा बुरा ही होता है। क्योंकि हम उतनी दूर तक नहीं देख पाते, जितनी दूर तक 'वह' देख सकता है। अतः हमें चाहिए कि जीवन में घटने वाली घटनाओं को उसकी इच्छा मानकर समभाव से स्वीकार करें तथा सदैव प्रसन्न रहें।

अर्थात्‌ जो काम हमारी इच्छा से नहीं हुआ, उसमें उसकी इच्छा निहित है या थी। और उसकी इच्छा कभी किसी का बुरा कर ही नहीं सकती।

एक प्रशासक, एक कवि, एक चित्रकार और एक आलोचक एक ऊंट पर बैठकर रेगिस्तान से गुजर रहे थे। रास्ते में एक रात यों ही वक्त बिताने के लिए उन्होंने सोचा कि वे अपने-अपने हिसाब से ऊंट का वर्णन करें। प्रशासक तंबू में गया और उसने दस मिनट में ऊंट के महत्व को दर्शाने वाला एक व्यवस्थित और वस्तुनिष्ठ निबंध लिख दिया। कवि ने भी लगभग दस मिनट में ही अनुपम छंदों में यह लिख दिया कि ऊंट किस प्रकार एक उत्कृष्ट प्राणी है। चित्रकार भी कहां पीछे रहने वाला था! उसने अपनी तूलिका उठाई और कुछ सधे हुए स्ट्रोक्स लगाकर ऊंट की बेहतरीन छवि की रचना कर दी।
अब आलोचक की बारी थी। वह कागज-कलम लेकर तंबू में चला गया। उसे भीतर गए दो घंटे बीत गए। बाहर बैठे तीनों लोग बेहद उकता चुके थे। वे आलोचक के जल्दी बाहर आने की राह देखते-देखते थकने लगे थे। काफी देर बाद आखिरकार आलोचक बाहर आया और बोला, मैंने इस जानवर के कुछ नुक्स खोज ही लिए। इसकी चाल बड़ी बेढब है। यह जरा भी आरामदेह नहीं है और यह बदसूरत भी है। इतना कहते हुए उसने कागज का एक पुलिंदा उन लोगों को थमा दिया। उस पर लिखा था, ऊंट ईश्वर की रचना है। हमारी समझ उसकी समझ से बेहतर नहीं हो सकती। इसलिए वह जैसा भी हो, हमारे लिए अच्छा भले ही न हो, पर ऊपर वाले की नायाब रचना है।

वह जैसा भी हो, मालिक की बेहतरीन रचना है
अंतर्यात्रा बदसूरत से बदसूरत जीवों का सृजन भी ईश्वर ने खास प्रयोजन के लिए किया है।

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