कल का कोई भरोसा नहीं

INS/26/2014


परमात्मा को पाने का खयाल आपके भीतर एक लपट बन गया हो, तो उस ख्याल को जल्दी कार्य में लगा देना। जो शुभ को करने में देर करता है, वह चूक जाता है। और जो अशुभ को करने में जल्दी करता है, वह भी चूक जाता है। 

जीवन का सूत्र यही है कि अशुभ को करते समय रुक जाओ और देर करो, और शुभ को करते समय देर मत करना और रुक मत जाना। अगर कोई शुभ विचार मन में आ जाए तो उसे उसी समय शुरू कर देना उपयोगी है, क्योंकि कल का कोई भरोसा नहीं है।

क्योंकि आने वाले क्षण का कोई भरोसा नहीं है। हम होंगे या नहीं होंगे, नहीं कहा जा सकता। इसके पूर्व कि मृत्यु हमें पकड़ लें, हमें यह सिद्ध कर देना है कि हम इस योग्य नहीं थे कि मृत्यु ही हमारा भाग्य हो। मृत्यु से ऊपर का कुछ पाने की क्षमता हमने विकसित की थी।

यह मृत्यु के आने तक तय कर लेना है। और वह मृत्यु कभी भी आ सकती है, वह किसी भी क्षण आ सकती है। अभी मैं बोल रहा हूं और इसी क्षण आ सकती है। तो मुझे उसके लिए सदा तैयार होने की जरूरत है। प्रतिक्षण मुझे तैयार होने की जरूरत है।

अगर कोई बात ठीक प्रतीत हुई हो, तो उसे आज से शुरू कर देना जरूरी है। कल रात मैं वहां कहता था, झील पर हम बैठे थे। और कल रात मैंने वहां कहा कि ‘तिब्बत में एक साधु हुआ, उससे कोई व्यक्ति मिलने गया था, और सत्य के संबंध में पूछने गया था।

वहां तिब्बत में रिवाज था कि साधु की तीन परिक्रमा करो और फिर उसके पैर छुओ और फिर प्रश्न करो। वह युवक गया और उसने न तो परिक्रमा की और न पैर छुए। उसने जाते से ही पूछा कि मेरी कोई जिज्ञासा है, उत्तर दें। उस साधु ने कहा, ‘पहले जो औपचारिक नियम है, उसे तो पूरा को!’

वह युवक बोला कि ‘तीन तो क्या मैं तीन हजार चक्कर लगाऊं। लेकिन अगर तीन ही चक्करों में मेरे प्राण निकल गए, और सत्य को मैं न जान पाया, तो जिम्मा किसका होगा? मेरा या आपका? इसलिए पहले मेरी जिज्ञासा पूरी कर दें, फिर मैं चक्कर पूरे कर दूंगा।’

तो सबसे बड़ा महत्वपूर्ण बोध मृत्यु का बोध है। साधक को इसका प्रतिक्षण ज्ञात होना चाहिए कि किसी भी क्षण मौत हो सकती है। आज सांझ मैं सोऊंगा, हो सकता है यह आखिरी सांझ हो, और सुबह मैं न उठूं।

तो मुझे आज रात सोते समय इस भांति सोना चाहिए कि मैंने अपने जीवन का सारा हिसाब निपटा लिया है, और अब मैं निश्चिंत सो रहा हूं, और अगर मौत आएंगी तो उसका स्वागत है।

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