सफल व्यक्ति केवल वर्तमान में जीता है।

सच पूछा जाए तो सफल व्यक्ति केवल वर्तमान में जीता है। वर्तमान हमारा कर्मक्षेत्र है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं, तुम वर्तमान में जीते हुए कर्म करो। भूत और भविष्य पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है।’ अतीत तो बीत गया, जो कभी लौटकर नहीं आएगा और भविष्य के आने की दूर-दूर तक संभावना नहीं है, क्योंकि भविष्य कभी आता ही नहीं, केवल प्रलोभन दिखाता है, जैसे मृगतृष्णा।सच तो यह है कि जीवन में केवल वर्तमानकाल होता है। यही सत्य है। इसके सिवा और कोई काल नहीं होता। इसलिए जो व्यक्ति वर्तमान में जीने का संकल्प कर लेता है, वह कभी नहीं हारता। ऐसा इसलिए, क्योंकि वह अतीत के खंडहर में अपना भविष्य खोजने नहीं जाता और न भविष्य की संभावनाओं की आहट सुनने का प्रयास करता है। इसीलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि तुम केवल कर्म करो, फल की चिंता मत करो। क्योंकि फल की चिंता तुम्हारे लिए कोई दूसरा कर रहा है। जैसे- तुम परीक्षा देते हो तो स्वयं नंबर नहीं देते, कोई दूसरा तुम्हारी लिखावट या उत्तरों का मूल्यांकन करता है। इसीलिए जीवन में भी तुम्हें कर्म करने का अधिकार है। जैसा तुम करोगे, वैसा फल मिलेगा, क्योंकि इस संसार में बहुत कुछ तुम्हारे हाथ में नहीं है। यहां तक कि तुम्हारा शरीर भी तुमसे पूछकर नहीं बढ़ता और न पूछकर वृद्ध होता है। तुम कुछ भी नहीं कर सकते। जब तुम्हारे हाथ में कुछ है ही नहीं,तो अपनी असफलता पर दुखी क्यों होते हो। प्रकृति या परमात्मा सब कुछ करता जा रहा है। वृक्ष की डालियों पर कोयल की कूक, नदियों की धारा स्वत: बहती जाती है। इसलिए संतों का मत है कि प्रकृति से सहमत हो जाओ, नदी की धारा में बहते चले जाओ। धारा का प्रतिरोध करोगे, तो नदी में डूब जाओगे, क्योंकि कुछ भी तुम्हारे हाथों में नहीं है। मनुष्य की स्थिति इस संसार रूपी समुद्र में एक बूंद के सदृश है। कोई बूंद सागर का दायित्व नहीं ले सकती। इसलिए हमें स्वयं की चिंता करती चाहिए। अपने विचारों, संस्कारों और कार्र्यो से जीवन में नया मार्ग बनाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति नया बीज लेकर जन्म लेता है। एक बीज दूसरे बीज को देखकर अंकुरित नहीं होता। नीम का बीज आम का बीज नहीं बनता, क्योंकि प्रत्येक केवल अपने गुण और स्वरूप से बढ़ता है। कई बार हम अंधपरंपराओं का अनुकरण करने लगते हैं, जिससे हम बिखर जाते है।

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