Praise Extra life प्रशंसा की आकांक्षा

ins/26/2014
 Praise Extra life प्रशंसा की आकांक्षा
"जो काम मुझे पसंद हैं, वे ही करूँगा। दुसरो को जो पसंद हैं, वे काम मैं किसी भी हालत में नहीं करूँगा। पोते ने दादा से कहा, दादा समझ गये कि अब भी आनन्द की बुद्धि का विकास नहीं हुआ। उन्होंने उसे उस गाँव के महापंडित के पास विद्याभ्यास के लिए भेजा। सबकी प्रशंसा पाने के उद्देश्य से आनन्द ने बड़ी मेहनत करके पढ़ाई की। एक ही साल के अंदर उसने अपने को सबसे श्रेष्ठ साबित कर दिया। पर, उन विद्यार्थियों से झगड़ा करता रहता था, जो उसकी प्रशंसा नहीं करते थे। वे तंग आकर गुरु से इसकी शिकायत की।

'' महापंडित ने उसे समझाया।धन हो या अक्लमंदी, उपयोग में आने पर ही उसका मूल्य है। अगर वह उनके काम नहीं आया तो बड़ों की भी कोई तारीफ़ नहीं करता। तुम चाहते हो कि सब,तुम्हारी प्रशंसा करें तो ऐसे काम भी करो, जो सबके लिए लाभदायक हों,आनन्द को आचार्य की बात पसंद नहीं आयी और अपने को उसने नहीं बदला।

एक दिन महासुर नाम का राक्षस जगल मे मिला वाह दर्द से परेसान था?'' महासुर ने उसे अपने मुँह में डाल लिया तो उसने निधड़क उसके सब दांतों का धावन किया, जिससे उसका दर्द दूर हो गया। महासुर ने उसे मुंह से बाहर निकाला और प्रसन्न हो पुछा तुम्हारी कोइ एक इच्छा मै पुरा करुगा बोलो ।

जो काम मुझे पसंद हैं, वे ही काम मैं करता हूँ। फिर भी, सबको मेरी प्रशंसा करनी होगी। यही मेरी इच्छा है। क्या यह काम तुम कर सकते हो?''  आनन्द ने पूछा।

"मेरे पास तन्थु नामक अद्‌भुत शक्ति है। जब तक तुम चाहोगे, वह शक्ति तुम्हारे पास रहेगी।
तुम बुरा करो या अच्छा, सब तुम्हारी प्रशंसा करेंगे और तुम नाम कमाओगे।'' यों कहकर महासुर वहाँ से चला गया। तब से सब शिष्य उसकी तारीफ़ के पुल बांधने लगे। उसके धैर्य की तारीफ़ करने लगे। गुरु ने भी कह दिया, "अब तुम सब विद्याओं में पारंगत हो गये।'' एक दिन ग्रामाधिकारी ने उससे मिलकर कहा, "मैं अब से तुम्हारा अनुचर बनकर रहूँगा और तुम्हारी हर बात को मानूँगा।''

तन्थु की महिमा के कारण आनन्द की ख्याति देश भर में फैल गयी। सब ग्रामाधिकारी दुराचारी बन गये। क्रमशः राजा को भी उसके बारे में मालूम हुआ। राजा ने गुप्तचरों को भेजकर विषय की जानकारी पायी। अब राजा को लगने लगा कि आनन्द का प्रभाव जारी रहा तो सर्वनाश होकर रहेगा। वह घबरा गया और उसने महापंडित का आश्रय लिया।उन्होने उपाय बताया.

आनन्द की प्रशंसा करते हुए शिला-लेख लिखवाना। साथ ही घोषणा करवा देना कि दुराचारी व अनैतिक मानवों का किस-किस प्रकार की यातनाएँ सहनी होंगी। तुम्हारी समस्या का हल हो जायेगा.महापंडित के कहे अनुसार, राजा ने किया। साल ही के अंदर बहुत लोगों के साथ-साथ आनन्द में भी परिवर्तन हुआ। अब उसने तन्थु का उपयोग छोड़ दिया और अच्छे काम करने लगा। देश धर्मात्माओं के स्थल में बदल गया।

तब राजा ने परिवर्तन कारण महापंडित से पुछा ? कुछ देर मौन रह कर बोले ,"मानता हूँ कि निस्संदेह भीतियों में से सबसे भयंकर भीति है, प्राण भीति।
"परंतु, आन्न्द मे अंत तक उसका यह स्वभाव बना रहा। परंतु तदनंतर वह समझ गया कि प्रजा यह विश्वास करेगी कि राजा का यातनाएँ सहनी होंगी। वे बुरे लोग हैं। अगर ऐसा नहीं होना है हो तो एक ही मार्ग है, अच्छा बनकर रहना।

कहानी का सार :-
प्रशंसा की आकांक्षा रखनेवाले अच्छे काम ही नहीं करते, बल्कि बुरे काम करना भी छोड़ देते हैं।'
"यदि तुम चाहते हो कि सब तुम्हारी प्रशंसा करें तो उनके साथ तुम्हारा व्यवहार अच्छा होना चाहिये। इसके सिवा कोई दूसरा मार्ग नहीं है।''



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