Lovers of profession/- पेशे का प्रेमी

ins/25/17/2014

Lovers of profession/- पेशे का प्रेमी

एक व्यापारी रहा करता था। नाम था श्याम । व्यापार में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं थी।सब लोग उसकी विद्वता की प्रशंसा भी करते थे। एक दिन, विमला नामक एक युवती ने उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। उस दिन से श्याम विमला से प्रेम करने लगा।

श्याम ने अपने पिता से विवाह करने को कहा  जबकि वाह अपने मित्र जय की पुत्री से विवाह करने को कह रहे  थे उन्होने मना कर दिया और बोले‘‘मेरे मित्र की पुत्री से विवाह करने से इनकार कर रहे हो और मेरे शत्रु की पुत्री से विवाह पर तुले हुए हो। अगर तुम्हारा यही निर्णय है तो इसी क्षण घर से निकल जाओ। तुम्हारे लिए मेरे घर के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हैं।''

उसने वापस आकर पिता की बात प्रेयसी को बताइ ,विमला बोली,‘‘तुम्हें तुम्हारे पिता ने घर से निकाल दिया। अब तुम्हारे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। शादी कर लेंगे तो कैसे सुखी रह सकते हैं। जब तक अपने को योग्य व धनी साबित नहीं करोगे तब तक तुमसे शादी करने का सवाल ही नहीं उठता।'' उसने स्पष्ट शब्दों में कह दिया।

श्याम को लगा कि विमला की बातों में औचित्य है। उस दिन से वह धन कमाने के प्रयत्नों में जी-जान से लग गया। लेकिन तत्काल पेट भरना भी उसके लिए मुश्किल था।

ऐसी परिस्थितियों में, बाजपुर के एक निवासी ने श्याम से कहा, ‘‘इस गाँव में कपड़े धोनेवाले नहीं हैं। तुम अगर मेरे घर के कपड़े धोओगे तो दोनों व़क्त खाने का बंदोबस्त करूँगा। और हर महीने पाँच हजार दूँगा।''कोई और चारा नहीं था। चक्रि ने उसका कहा मान लिया और नौकरी पर लग गया। अड़ोस-पड़ोस के लोग भी उसे धोने के लिए कपड़े देने लगे। क्रमशः उसकी मासिक आय बढ़ने लगी।

एक दिन उसके मालिक के घर एक साधु आया। श्याम को उसके वस्त्र धोने पड़े। साधु ने श्याम को बुलाकर कहा, ‘‘तुमने मेरे कपड़े धोये, पर गंदगी जैसी की तैसी है। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो तुम अपने पेशे में कैसे आगे बढ़ सकते हो?''

श्याम की आँखों में आँसू उमड़ आये। उसने साधु को अपनी प्रेम-कहानी सुनायी और कहा, ‘‘लाचार होकर मैं यह काम कर रहा हूँ। कपड़े धोना मेरा पेशा नहीं है।''साधु को उसपर दया आ गयी। उसने कहा, ‘‘जिस पेशे में तुम आगे बढ़ना चाहते हो, उस पेशे से प्रेम करना चाहिये। अन्यथा जीवन में तुम्हारी प्रगति कदापि नहीं होगी।''

साधु की इन बातों ने श्याम पर मंत्र की तरह काम किया। साधु के चले जाने के बाद, वह एक दूरस्थ गाँव में गया और वहाँ अपने पेशे से संबंधित बारीकियाँ सीखीं। फिर लौट कर कपड़ा धोने के क्षेत्र में नयी पद्धतियों को अमल में लाने लगा। इस वजह से जो कपड़े वह धोता था, वे एकदम सफ़ेद होते थे। रंग भरे कपड़े नये दिखते थे। पुराने कपड़े अगर रंगहीन हो जाते तो वह उनपर रंग चढ़ाता था। नये कपडों का रंग अगर पसंद न आता हो तो वह उस रंग को बदल भी देता था। वहा के निवासियों ने पहचाना कि यह एक बड़ी कला है और वे उसका आदर भी करने लगे। श्याम को अब इस पेशे से पर्याप्त आमदनी भी मिलने लगी। साल ही के अंदर उसने नाम कमाया, साथ ही बहुत धन भी।

वाह वापस विमला के पास जाकर शादी के लिये कहा ,विमला श्याम से कहने लगी, ‘‘मेहनत करके जीवन निर्वाह करने का यह पेशा मुझे पसंद नहीं। अगर यह पेशा नहीं छोड़ा तो मैं तुमसे शादी नहीं करूँगी। निर्णय कर लो कि तुम मुझे चाहते हो या अपने पेशे को।''

श्याम नाराज़ी से बोला, ‘‘तो मेरा भी निर्णय सुन लो। उसी से मैं विवाह करूँगा, जो मेरे साथ मेरे पेशे का भी आदर करेगी।वाह वापस जाने लगा रास्ते मे पिता मित्र मिले उसने उन्से अपनी बात बताइ ''तब जय ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटा, मेरी तीसरी बेटी तुम्हारे साथ कपड़े धोने के लिए तैयार है। क्या उससे शादी करोगे?''श्याम ने तुरंत जय के पाँव छूते हुए कहा, ‘‘आपकी पुत्री से विवाह करना अपना भाग्य समझता हूँ।''और वह सुखपुर्वक रह्ने लगा ।

कहानी का मोरल  :-
‘‘कुछ ऐसे पेशे होते हैं, जो आदरणीय नहीं लगते, पर जो व्यक्ति उन पेशों को अपनाते हैं और अपनी प्रतिभा से उन्हें आदरणीय बनाते हैं, वे विशिष्ट व्यक्ति कहलाते हैं। साधु के हितबोध से श्याम ने यह जाना और वह उस पेशे का प्रेमी बना। उसने साबित कर दिखाया कि कपड़ों को धोना कोई हेय पेशा नहीं है।‘‘पेशा अगर तुम्हें इज्ज़त बख्शे तो वह पेशे का बडप्पन है। पेशे की इज़्जत अगर तुम करोगे तो वह तुम्हारा बडप्पन है। पेशे की बारीकियाँ सीखो और नयी पद्धतियाँ अपनाओ।''

            ***********************शुक्रिया



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