"उत्कृष्टता किसी के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारी खुद की संतुष्टि है"
INS/23/11
EXCELENCY "उत्कृष्टता किसी के लिए नहीं है, बल्कि यह हमारी खुद की संतुष्टि है"
एक आदमी एक बार मंदिर गया वहा उसने एक मूर्तिकार को देखा जो एक भगवान की एक मूर्ति बना रहा था है. अचानक उसने देखा जैसी मूर्ति मूर्तिकार बना रहा था हुबहु वैसी मूर्ति बनी रक्खी थी . हैरान , होकर उसने पूछा, मूर्तिकार ,तुम्हे दो प्रतिमाओं की ज़रूरत है क्या एक ही मूर्ति की? मूर्तिकार ने कहा " नहीं, "केवल एक ही है, लेकिन पहली मूर्ति बनाते समय एक आखिरी चरण में क्षतिग्रस्त हो गयी .सज्जन आदमी ने मूर्ति की जांच की और कोई स्पष्ट नुकसान नही मिला .
सज्जन आदमी ने" पूछा कहां क्षतिग्रस्त है ? " मूर्तिकार ने कहा की नाक पर एक खरोंच है दुसरी मूर्ति के साथ मूर्तिकार , अभी भी व्यस्त था .
सज्जन आदमी ने पूछा"तुम कहाँ मूर्ति स्थापित करने के लिए जा रहे हो ?"मूर्तिकार ने जवाब दिया कि यह बीस फुट ऊंची एक स्तंभ पर स्थापित किया जाएगा "सज्जन आदमी बोला मूर्ति अगर इतनी उचाइ पर होगी तो नाक पर एक खरोंच का पता नही चलता, क्या मै सही कह रहा हु? मूर्तिकार , ने अपना काम बंद कर दिया सज्जन को देखा , मुस्कराए और बोले ,यह पता चल जाएगा. ( भक्तो को नही मुझे ) जब मै दर्शन करुगा तब तब .
कहानी का नैतिक :
उत्कृष्टता प्राप्त करने की इच्छा किसी और द्वारा इसे सराहना करने की नही है की जो कार्य आपने किया है वो उत्कृष्ट है . उत्कृष्टता बाहर से सराहना के लिए किसी और के द्वारा नहीं बल्कि अपने खुद के अंदर से संतोष आना चाहिये ये कार्य हमने किया है
"उत्कृष्ट कार्य का संतोष , ह्दय से आता है .जैसे बेटा अगर काबिल निकले तो गर्व से माता पिता का सीना उँचा हो जाता है अंदर ह्दय मे खुशी होती है.
************** *************** शुक्रिया
SK
Comments