आगे बढ़ने की सीख 1973 के नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. आइवर गियवर,




ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी-फारसी विश्वविद्यालय के कुलपति अनीस अंसारी ने अपने शेर ‘आज की रात मेरे साथ रहो, कुछ न कहो, जो भी होना था हुआ, गम न करो ख्वाब बुनो’ छात्राओं को निराश हुए बिना जीवन में आगे बढ़ने की सीख दी।

1973 के नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. आइवर गियवर, रोचक अंदाज में बताई अपनी कहानी
‘मैंने तो डी-ग्रेड पाया था, फिर भी मिला नोबेल’

बात तब की है, जब मुझे नोबेल नहीं मिला था और कहीं कोई खास पहचान भी नहीं थी। नौकरी के लिए जीई वाले मेरा इंटरव्यू ले रहे थे। मैकेनिकल इंजीनियरिंग की मार्क्सशीट देखकर बोले आपको को चार पॉइंट (डी ग्रेड) मिले हैं। कटाक्ष किया कि आप अच्छे स्टूडेंट रहे होंगे। लेकिन फिर उन्होंने मुझे नौकरी पर रख लिया। यहीं ‘टनलिंग इफेक्ट’ पर काम करते हुए मैंने 10 साल बाद नोबल पुरस्कार जीता। इसलिए ही कहता हूं कि डी ग्रेड पाने वाले विद्यार्थी भी खुद को कम न समझें। वे नोबेल पाने की दौड़ में किसी से पीछे नहीं हैं।’ पढ़ाई में औसत रहे डॉ. आइवर गियवर का यह संदेश सभी विद्यार्थियों के लिए एक संदेश है। डॉ. गियवर रविवार को विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने आए थे। इस दौरान उन्होंने वैज्ञानिकों और विद्यार्थियों से अपने अनुभव साझा किए।

नार्वे में 1929 में जन्मे डॉ. आइवर ने बताया कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के बाद नौकरी के लिए वे कनाडा चले गए। कुछ समय बाद उन्हें जीई कंपनी में नियुक्ति मिली और अमेरिका पहुंचकर काम शुरू किया। यहां उनके मेंटर रहे डॉ. जॉन फिशर ने उन्हें क्वांटम मैकेनिक्स के बारे में बताया। लेकिन उनका कहा एक भी शब्द मेरी समझ में नहीं आया। न ही जो कुछ उन्होंने कहा उसमें मेरा कोई विश्वास था। लेकिन जल्द उन्होंने मुझे शोध से जोड़ा और मैंने ठोस वस्तुओं में टनलिंग के विज्ञान पर काम शुरू किया। इस दौरान सफलता मिली और पहचान भी। इसी के बाद वर्ष 1973 में मुझे फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार मिल गया। अपनी थ्योरी‘टनलिंग इन सॉलिड’ को समझाने के लिए उन्होंने टेनिस बॉल और दीवार का उदाहरण दिया। उन्होंने बताया कि टेनिस बॉल को जब दीवार पर मारा जाता है तो वह टकराकर वापस लौट आती है। लेकिन जिज्ञासा थी कि क्या सारी ऊर्जा वहीं रुक जाती है? तत्वों के बीच कितना गैप होना चाहिए, कि ऊर्जा आगे चले। इसी का जवाब तलाशते हुए थ्योरी तैयार हुई। इसमें तत्वों के बीच मौजूद नैनो मीटर की एनर्जी गैप कही जाने वाली दूरी से ऊर्जा के प्रसार को समझाया गया। कार्यक्रम में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के प्रमुख सचिव डॉ. हरशरण दास, बीरबल साहनी संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सीएम नौटियाल सहित बड़ी संख्या में वैज्ञानिक और विद्यार्थी मौजूद थे।

ग्लोबल वॉर्मिंग बस ढकोसला
ग्लोबल वॉर्मिंग की थ्योरी को डॉ. आइवर ने पूरी तरह खारिज करते हुए इसे ढकोसला करार दिया। बीते 150 वर्षों में पृथ्वी के तापमान में 0.8 डिग्री बढ़त की बात की जा रही है, लेकिन यह किसके मुकाबले? पहले किसने आंकड़े निकालेे थे यह स्पष्ट नहीं किया जा रहा है।

बच्चों को प्रेरित करें
भारत में फिजिक्स के दो ही नोबेल पर डॉ. आइवर बोले की दक्षिण कोरिया ने तो एक भी नोबेल नहीं पाया, लेकिन उस देश की तरक्की किसी से छिपी नहीं है। चीन का भी यही हाल है। बीजिंग 1970 तक एक गांव ही था, आज देखिए। उन्होंने जोर दिया कि बच्चों को रोकने के बजाए प्रेरित करें। नोबेल अपने आप आएंगे।

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