कुछ मौके बस symbols की तरह रहते हैं -inspire करने के लिए









स्कूल के पुराने दोस्तों के साथ रात भर बातें चली। विकास अपना कारोबार सेट कर चूका था गौरव  इंडिया के सबसे अच्छे फ्रैंचाइज़ी ले ली , पाण्डेय बैंक मेनेजर  जय गणेश दुबे फर्म प्रोफेसर बन चूका है और कपूर ने  एक एग्रो  बिज़नस ज्वाइन किया है। बात फसिलीटीएस एंड पॉसिबिलिटी  की हो रही थी, तब पता चला कि देश ने हर वर्ग के लोगों के लिए काफ़ी सारी पॉलिसीस बना रखी हैं। लोगों को मालूम नहीं होता क्यूंकि बताने वाले 'लोग' नहीं हैं। संस्थाए हर वर्ग, हर धर्म और हर जाति के लिए बहुत कुछ सोचते हैं, पर सोच संस्था से हटकर मात्र कुछ 'लोगों' के पॉकेट में रह जाता है। बलात्कार संस्था नहीं करतें, भ्रष्टाचार संस्था नहीं करतें,भ्रष्टाचार काला धन  संस्था के पॉकेट में नहीं जाता; या यूँ कहें, बिमारी रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया में नहीं -संस्था हर वर्ग, हर धर्म और हर जाति के लिए बहुत कुछ सोचते हैं, पर सोच संस्था से हटकर मात्र यहाँ के लोगों में होती है। कॉलेज में लाखों के बजट का कल्चरल फेस्ट बनाया जाता है। पैसा कॉलेज नहीं खाता, पैसा वो cultural fest भी नहीं खाता, पैसा 'लोग' खाते हैं। क्या इसका मतलब ये है कि हम कॉलेज के के विरुद्ध खड़े हो जाएँ ? क्या इसका मतलब ये है कि हम चीज़ें किसी ऐसे प्रतिष्ठान के मत्थे डाल दें, जो विकास और निर्माण का प्रतीक हो। बातें होती रही,सुबह तक हम अपने स्कूल के दिनों के परेड को याद कर रहे थें। स्कूल ने हमें आज यहाँ खड़ा किया था। दिल से अभिवन्दन करने का मन कर रहा था।


25 जनवरी 2013 को राहुल द्रविड़ को पद्म भूषण मिला।  मैच के बाद द्रविड़ को बुलाया गया था। द्रविड़ के शर्ट पर भारत का लोगो और आँखों में आंसू के बूंद थें। राहुल द्रविड़ हर दिन नहीं रोता है। राहुल द्रविड़ हर दिन वही शर्ट नहीं पहनता है। कुछ मौके बस सिम्बल्स की तरह रहते हैं - आने वाले पीढ़ियों को प्रेरणा देने के लिए।

भारतीय गणतंत्र ने ऑस्ट्रेलिया में मैच जीत लिया था।

 वो जो अनपढ़ हैं चलो हैवान हैं तो ठीक हैं,
हम पढ़े लिखों को तो इंसान होना चाहिए...’

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