मानस पूजा का क्या महत्त्व हैं ? मूर्ती,प्रकृति और स्वयं की पूजा करना,
मन को फूल के जैसा खिलने के लिये वातावरण का सृजन करना ही पूजा है |आपका दिल,मन और पूरी चेतना खिल जाती हैं | पूजा सिर्फ एक कृत्य हैं | इससे यह फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या कर रहे हैं |यह सब बाहरी रूप में हैं परन्तु सबसे मुख्य हैं आपके भीतर की भावनायें | इसलिये पूजा श्रेष्ठ होती हैं परन्तु मानस पूजा सर्वश्रेष्ठ होती है | मानस पूजा का तात्पर्य हैं पूजा को मन में करना | मेरा दिल आपका सिंहासन हैं ; “रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैर्स्नानं च दिव्यांबरं,नानारत्नविभूषणं मृगमदामॊदाङ्कितं चन्दनम्” । इस पूरी मानस पूजा में सबकुछ आपका हैं, पूरा संसार भी आपका ही है | मेरा दिल और मन एक फूल हैं | और जब आप विश्राम करते हुये गहन विश्राम में चले जाते हैं; तो आपका मणिपुर चक्र बड़ा होकर खिल जाता हैं |मणिपुर चक्र को मध्य का मस्तिष्क भी कहते हैं और विज्ञानिकों ने पाया कि सामान्यताः मणिपुर चक्र करोंदे के जितना होता हैं और योगियों में यह मशरूम या बेर के जितना बड़ा हो जाता है |जो लोग नियमित रूप से योग और ध्यान करते हैं, उन्होंने पाया कि उनका मणिपुर चक्र बड़ा हो गया था | वह मूंगफली या करोंदे के छोटे आकार से बेर के जितना बड़ा हो जाता हैं | जब मध्य का मस्तिष्क या मणिपुर चक्र बड़ा हो जाता हैं तो स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (आटोनोमस नर्वस सिस्टम) पर अधिक नियंत्रण आ जाता है | योग करने से ऐसा होता है | इसलिये वे इसे पद्मनाभ कहते हैं | पद्मनाभ का अर्थ क्या हैं? वह योग निद्रा में विश्राम कर रहे हैं | उनकी नाभि फूल के जैसे बन गयी हैं | पद्म का अर्थ हैं कमल या फूल | जब आपकी नाभि फूल के जैसे खिल जाती हैं तो फिर क्या होता हैं ? यदि आप योगी हैं और आप पद्मनाभ हैं तो आप अत्यंत सृजनात्मक बन जाते हैं |आपके भीतर से सृजनकर्ता बहार आ जाते हैं | यह इसका भी प्रतीक हैं कि आपके नाभि से एक कमल आया और सृष्टिकर्ता उस पर आकर बैठ गये |इसका एक गहन अर्थ भी हैं | जब आप योग निद्रा या ध्यान कर रहे होते हैं और जब आप चेतना के चौथी अवस्था के गहन में चले जाते हैं, तो आपकी नाभि कमल या फूल के जैसे बन जाती हैं | पेट में सारी नकारक भावनायें संग्रहित होती हैं | इसलिये जब आप भय में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं |जब आप चिंता में होते तब आपके पेट में कुछ होता हैं | आपमें से कितनों यह अनुभव किया हैं? चाहे वह भय, चिंता, नकारात्मक भावनायें, लालच या ईर्ष्या हो तब पेट में कुछ होता हैं | हानि होने का भय और दुःख होने से पेट में कुछ होता हैं | वह सिकुड़ कर छोटा हो जाता हैं वह पद्मनाभ नहीं हैं | जब नाभि खिल जाती हैं तो उदारता, प्रेम और सृजनात्मकता जैसे गुण आने लगते हैं | पद्मनाभ वह हैं जो अत्यंत सृजनात्मक हैं | इसलिये भीतर की पूजा समर्पण हैं | सबकुछ आपका हैं, मेरा मन,शरीर,विचार,भावनायें,पूरा वातावरण आपका हैं और सब कुछ एक ही हैं |आप कह रहे हैं ‘मैं नहीं हूँ,आप भी नहीं हैं, और सिर्फ एक ही चीज़ हैं और वह पूजा हैं | आरती का अर्थ हैं, मेरे जीवन का प्रकाश दिव्यता के पास जाये और मैं सम्पूर्ण ज्ञान को स्वीकार करता हूँ | मैं इस ज्ञान और विवेक को अपने भीतर समां लेता हूँ |
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