प्रणाम गुरुदेव ।


राजा की सवारी आकर गंगा के किनारे रुकी , क्योंकि आज गुरू - पूर्णिमा होने के कारण वे गंगा स्नान के लिए आये थे|
तभी उनकी नजर एक छोटे से बालक पर पड़ी | जो दूर बैठा मिट्टी से खेलने में व्यस्त था | राजा उस बालक के पीछे आकर बैठ गए | किन्तु उसे कुछ आभास नहीं हुआ | क्योंकि वह अपने खेल में पूर्ण तन्मय था | उन्होंने ही पहल करते हुए पूछा - " तुम्हारा नाम क्या है ?
बालक - " माधो "
राजा - तुम मट्टी से क्यों खेल रहे हो ?
माधो - क्योंकि यह शरीर मट्टी से बनता है और मट्टी में मिल जाता है | इसलिए
इसी से खेल रहा हूँ |
राजा उत्तर सुनकर प्रसन्न हो गए , इसलिए उन्होंने पूछा - मेरे साथ रहोगे ?
माधो - क्यों नहीं ,मेरे लिए इससे बड़ी खुशी की बात क्या हो सकती है , किन्तु मेरी कुछ
शर्तें हैं |
राजा ने मुस्कराते हुए पूछा - अपनी शर्तें बेहिचक कहो |
माधो - मैं खाऊंगा , किन्तु आप कुछ नहीं खायेंगे | मैं पहनूंगा किन्तु आप कुछ नहीं पहनेंगे|
मैं जहाँ -जहाँ जाऊंगा मेरे साथ चलेंगे | मैं जब सोऊंगा आप सदा जागकर मेरी रक्षा करेंगे |
राजा मन ही मन समझ गए कि यह बालक , बालक नहीं वरन बाल संत है | इसलिए
उन्होंने कहा कि जरा आप ही बताइए कि क्या इन शर्तों को मानना संभव है |
माधो मुस्कराते हुए बोला ,हे राजन - बिना सोचे - समझे किसी के सामने कोई प्रस्ताव नहीं रखना
चाहिए| मेरे प्रभु में उपरोक्त सभी गुण हैं , इसलिए ऐसे दयामय को छोड़कर आपके साथ कैसे रह सकता हूँ |
राजा मन ही मन उस बाल संत को नमन कर आगे बढ़ गए |

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