Grace and gratitude- अनुग्रह और कृतज्ञता

नजरों को धुंधला कर
देता है अभिमान
गुलाब के फूल ऊपर की टहनी पर खिल रहे थे और सड़ा गोबर उसकी जड़ में पड़ा था। गुलाब ने अपने सौभाग्य से सड़े गोबर के दुर्भाग्य की तुलना करते हुए गर्वोक्ति की और व्यंग्य से हंसा। माली हरितस्वामी उधर से निकला, तो उसने देखा कि गुलाब हंस रहा है। उसकी हंसी में व्यंग्य है। उसे लगा कि कहीं गुलाब उसे देखकर तो नहीं हंस रहा है। रहा नहीं गया, तो पूछ ही लिया कि मुझे देखकर हंस रहे हो क्या? गुलाब ने कहा, नहीं प्रभु, आपको देखकर कैसे हंस सकता हूं! आप तो मेरे भाग्य विधाता हो।
माली सुनकर खुश हुआ। उसे अपने पर गुमान होने लगा कि अपने भीतर कोई तो बात है। गृहिणी सुगंधा को बताया कि गुलाब उसे प्रणाम करने लगे हैं। सुगंधा ने कहा, हो सकता है स्वामी, आप अभिभावक हैं, इसलिए गुलाब आपको देखकर मुस्करा रहा हो। फिर कुछ रुककर बोली, यह भी मुमकिन है कि उसकी हंसी आपको रिझाने भर के लिए हो और आप उसके इस झांसे में आ गए हों। कल आपकी जगह मैं जाती हूं। देखती हूं कि गुलाब क्या आभास देता है।
अगले दिन सुगंधा गई, तो गुलाब उसे देखकर भी मुस्कराया, तो सुगंधा ने भी पूछा, क्यों हंस रहे हो? गुलाब ने कहा, अपनी सुंदरता और खुशबू पर मुझे गर्व है। सुगंधा पास जाकर बोली, ‘तुम्हें इस स्थिति में पहुंचाने में पिछड़े और हेय समझे जाने वाले खाद-पानी के रूप में काम आ रहे तत्वों की भूमिका है। और सबसे बड़ी भूमिका परमात्मा की है, जिसकी कृपा से ये संयोग उत्पन्न हुए।...सुगंधा कहते-कहते रुकी, तो देखा, गुलाब के फूल से कुछ बूंदें टपक आई हैं। उसे लगा कि गुलाब के आंसू निकल आए हैं। वह उन्हें पोंछने लगी, तो गुलाब ने कहा, रहने दीजिए, ये अनुग्रह और कृतज्ञता से निकले हैं।नजरों को धुंधला कर देता है अभिमान

अपने पर कभी अभिमान न करें, बल्कि सहयोगियों के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहें।

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