God can not be found anywhere else, it is present in the particle.ईश्वर को कहीं और नहीं ढूंढा जा सकता, वह तो कण-कण में मौजूद है।

संत मंडली के साथ ज्ञानेश्वर महाराज गोरा कुम्हार के घर आए। नामदेव भी साथ थे। ज्ञानदेव ने गोरा से कहा, तुम कुशल कुंभकार हो। बताओ, इनमें से कौन-सा बर्तन कच्चा है? गोरा ने पिटनी लेकर पीटना शुरू कर दिया। सभी संत मार खाकर भी शांत रहे। नामदेव की बारी आई, तो वह एकदम बिगड़ उठे। तुरंत गोरा बोला, यही कच्चा भाजन है।
नामदेव बड़े ही दुखी हुए। सब संतों के बीच गोरा द्वारा किए गए अपमान की उन्होंने भगवान से शिकायत की। भगवान ने कहा, नामा, सच है कि तू मेरा परम भक्त है, और मैं तेरे लिए सदा सब कुछ करने को तैयार रहता हूं। फिर भी तुझ में से मेरे-तेरे का भेद न मिटने से तू कच्चा ही है। यह तो बिना गुरु की शरण गए मिट नहीं सकता। शिवालय में विठोबा खेचर परम संत हैं। उनके पास जाकर तू ज्ञान प्राप्त कर आ।
नामदेव विठोबा के पास गए। विठोबा सो रहे थे। उनके पैर शिव की पिण्डी पर देखकर नामदेव को बड़ी अश्रद्धा हुई। उन्होंने सोचा, क्या ऐसे ही अधिकारी से ज्ञान प्राप्त करने की प्रभु ने मुझे सलाह दी। जब उनसे नहीं रहा गया, तो उन्होंने विठोबा से कहा, महाशय, आप बड़े संत कहलाते हैं, और शंकर की पिण्डी पर पैर धरते हैं। विठोबा ने कहा, नामा, मैं बूढ़ा जर्जर हो गया हूं। तुम्हीं मेरे पैर उठाकर उस जगह पर रख दो, जहां शिव की पिण्डी न हो।
नामदेव ने उनके पैर पकड़कर पिण्डी से उतार अन्यत्र रखे। मगर उन्हें वहां भी शिव की पिण्डी दिखी। इस तरह वह जहां-जहां पैर उठाकर रखते, उन्हें शिव की पिण्डी दिखती। वह समझ गए और तत्काल विठोबा जी के चरण पकड़ लिए।
विठोबा ने नामदेव को अद्वैत का बोध कराया। नामदेव की द्वैतबुद्धि मिट गई। दूसरे दिन संत-सभा के बीच भगवान ने नामदेव को लक्ष्य करके कहा, यह भाजन भी पक्का बन गया।

ईश्वर को कहीं और नहीं ढूंढा जा सकता, वह तो कण-कण में मौजूद है।

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