प्रेम और दया के बिना कोरे व्रत-उपवासों से भगवान कभी प्रसन्न नहीं होते। love and mercy without ever Corey fast - fasts are not happy of God .


दक्षिण कर्नाटक के बेलगांव में एक बड़े संत थे। उनका नाम चिदंबरम दीक्षित था। बड़ी संख्या में लोग उनसे अपने कष्टों का समाधान पूछने आते रहते थे। एक बार येलमा नाम की एक स्त्री उनके पास आई। उसकी कोई संतान नहीं थी। संतान न होने से वह अत्यंत खिन्न रहती थी। संत के पास आकर उसने अपना दुख कहा और प्रार्थना करने लगी कि वह आशीर्वाद दें।
संत ने उससे कुछ देर बात की। उसकी व्यथा सुनकर कुछ देर रुकने के लिए कहा। वह उठने लगी, तो चिदंबरम ने अपने पास रखी थैली से दो मुटठी भुने हुए चने निकाले और उसे देते हुए कहा कि जा, कुछ देर वहां चबूतरे पर बैठ। तुम वहीं बैठी रहना, तब तक मैं दूसरे लोगों से बात कर लूं। तुम्हें जब बुलाऊं, तभी आना। संत ने उन चनों को खाने या न खाने के बारे में कुछ नहीं कहा। येलमा चने लेकर चबूतरे पर बैठकर उसे चबाने लगी। वह बैठी चने चबा ही रही थी कि कहीं से खेलते-खेलते वहां चार-पांच बच्चे आ गए। कुछ बच्चे येलमा के पास रुककर उसकी तरफ देखने लगे। एकाध ने तो उसके सामने हाथ भी फैला दिए। येलमा ने सोचा कि ′एक को देने पर सभी को देना पड़ेगा।′ इसलिए वह उस जगह से उठकर अलग चली गई। पर उसने चने चबाना छोड़ा नहीं। अब वह मुंह छिपाकर चने खाने लगी।
थोड़ी देर बाद संत चिदंबरम ने उसे अपने पास बुलाया। उसका समय कैसे कटा और उसने उन चनों का क्या किया, आदि सवाल पूछे। येलमा ने अपना समय बिताने के साथ बच्चों के बारे में भी बताया और कहा, ′अरी! जब मुफ्त में मिले उन चनों में से चार दाने भी तुमसे किसी को देते नहीं बना, तब भगवान तुम्हें हाड़-मांस के बच्चे कैसे देंगे? प्रेम और दया के बिना कोरे व्रत-उपवासों से भगवान कभी प्रसन्न नहीं होते।′

देने से पहले भगवान परखता भी है

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