संघर्ष का होना जरूरी

उन दिनों ईश्वर पृथ्वी पर रहता था। एक दिन एक बूढ़ा किसान उसके पास आया और बोला, आप की रची कुदरत और इसके काम करने का तरीका बहुत खराब है। मुझे एक साल का समय दें। सब कुछ मेरे मुताबिक होने दें, मैं दुनिया को खुशहाल कर दूंगा। ईश्वर ने खुशी-खुशी किसान को एक साल की अवधि दे दी।

अब सब कुछ किसान की इच्छा के अनुसार होने लगा। किसान ने उन्हीं चीजों की इच्छा की, जो उसके लिए ठीक थीं। तूफान, तेज हवाएं और फसल को नुकसान पहुंचानेवाले हर खतरे रुक गए। किसान बहुत खुश था। बारिश समय पर हुई। खेती में बीमारी नहीं लगी। खर-पतवार नहीं उगे। किसान ने जैसा चाहा, वैसा ही हुआ। वह खुश था कि इस साल खूब अच्छी फसल होगी।

लेकिन जब फसल काटी गई, तो पता चला कि बालियों के अंदर गेहूं के दाने थे ही नहीं! किसान को समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हुआ। उसने ईश्वर से इसका कारण पूछा। ईश्वर ने कहा, ऐसा इसलिए हुआ कि कहीं भी कोई चुनौती नहीं थी, कोई कठिनाई नहीं थी। कहीं भी कोई उलझन, दुविधा अथवा संकट नहीं था। सब कुछ आदर्श था। तुमने हर अवांछित तत्व हटा दिए और गेहूं के पौधों में शक्ति बची ही नहीं। उसके लिए कहीं कोई संघर्ष का होना जरूरी था। कुछ झंझावात की जरूरत थी। कुछ बिजलियों का गरजना जरूरी था। ये चीजें गेहूं की आत्मा को हिलोर देती हैं।

सुखी और संपन्न रहने के लिए जरूरी मुश्किलें हमारी राह में बाधक नहीं। उससे संघर्ष कर हम पूर्णता को प्राप्त करते हैं।

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