अहिंसा का दिव्य संदेश- gandhi ji
motivation -ins-
Gandhi ji
मानव जाति के नियम
जिन ऋषियों ने हिंसा के बीच अहिंसा की खोज की, वे न्यूटन से अधिक प्रतिभाशाली थे। वे स्वयं वेलिंग्टन से भी बडे योद्धा थे। शस्त्रों के प्रयोग का ज्ञान होने पर भी उन्होंने उसकी व्यर्थता को पहचाना और श्रांत संसार को बताया कि उसकी मुक्ति हिंसा में नहीं अपितु अहिंसा में है।
मेरी अहिंसा
मैं केवल एक मार्ग जानता हूं - अहिंसा का मार्ग। हिंसा का मार्ग मेरी प्रछति के विरुद्ध है। मैं हिंसा का पाठ पढाने वाली शक्ति को बढाना नहीं चाहता... मेरी आस्था मुझे आश्वस्त करती है कि ईश्वर बेसहारों का सहारा है, और वह संकट में सहायता तभी करता है जब व्यक्ति स्वयं को उसकी दया पर छोड देता है। इसी आस्था के कारण मैं यह आशा लगाए बैठा हूं कि एक-न-एक दिन वह मुझे ऐसा मार्ग दिखाएगा जिस पर चलने का आग्रह मैं अपने देशवासियों से विश्वासपूर्वक कर सकूंगा।
(यंग, 11-10-1928, पृ. 342)
मैं जीवन भर एक 'जुआरी' रहा हूं। सत्य का शोध करने के अपने उत्साह में और अहिंसा में अपनी आस्था के अनवरत अनुगमन में, मैंने बेहिचक बडे-से-बडे दांव लगाए हैं। इसमें मुझसे कदाचित गलतियां भी हुई हैं, लेकिन ये वैसी ही हैं जैसी कि किसी भी युग या किसी भी देश के बडे-से-बडे वैज्ञानिकों से होती हैं।
(यंग, 20-2-1930, पृ. 61)
मैंने अहिंसा का पाठ अपनी पत्नी से पढा, जब मैंने उसे अपनी इच्छा के सामने झुकाने की कोशिश की। एक ओर,मेरी इच्छा के दृढ प्रतिरोध, और दूसरी ओर, मेरी मूर्खता को चुपचाप सहने की उसकी पीडा को देखकर अंततः मुझे अपने पर बडी लज्जा आई, और मुझे अपनी इस मूर्खतापूर्ण धारणा से मुक्ति मिली कि मैं उस पर शासन करने के लिए ही पैदा हुआ हूं। अंत में, वह मेरी अहिंसा की शिक्षिका बन गई।
(हरि, 24-12-1938, पृ. 394)
अहिंसा और सत्य का मार्ग तलवार की धार के समान तीक्ष्ण है। इसका अनुसरण हमारे दैनिक भोजन से भी अधिक महत्वपूर्ण है। सही ढंग से लिया जाए तो भोजन देह की रक्षा करता है, सही ढंग से अमल में लाई जाए तो अहिंसा आत्मा की रक्षा करती है। शरीर के लिए भोजन नपी-तुली मात्रा में और निश्चित अंतरालों पर ही लिया जा सकता है;अहिंसा तो आत्मा का भोजन है, निरंतर लेना पडता है। इसमें तृप्ति जैसी कोई चीज नहीं है। मुझे हर पल इस बात के प्रति सचेत रहना पडता है कि मैं अपने लक्ष्य की ओर बढ रहा हूं और उस लक्ष्य के हिसाब से अपनी परख करती रहनी पडती है।
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