मन से छूट जाना संन्यास है।

insperation/21/05/14

मन से मुक्त हो जाना ही संन्यास है। इसके लिए पहाड़ों पर या गुफाओं में जाने की कोई जरूरत नहीं है। दुकान में, बाजार में, घर में.. हम जहां भी हों, वहीं मन से छूटा जा सकता है..। 
संत लाख कहें कि संसार माया है, लेकिन सौ में से निन्यानबे संत तो खुद ही माया में उलझे रहते हैं। लोग भी अंधे नहीं हैं। वे सब समझते हैं। वे समझते हैं कि महाराज हमें समझा रहे हैं कि संसार माया है, वहीं वे स्वयं माया में ही उलझे हुए हैं। मेरा मानना है कि संसार माया नहीं, बल्कि सत्य है।
संसार माया नहीं, वास्तविक है। परमात्मा से वास्तविक संसार ही पैदा हो सकता है। अगर ब्रह्मा सत्य है, तो जगत मिथ्या कैसे हो सकता है? ब्रह्मा का ही अवतरण है जगत। उसी ने तो रूप धरा, उसी ने तो रंग लिया। वही तो निराकार आकार में उतरा। उसने देह धरी। अगर परमात्मा ही असत्य हो, तभी तो संसार असत्य हो सकता है।
लेकिन न तो परमात्मा असत्य है, न ही संसार। दोनों सत्य के दो पहलू हैं- एक दृश्य एक अदृश्य। माया फिर क्या है? मन माया है। मैं संसार को माया नहीं कहता, मन को कहता हूं। मन है एक झूठ, क्योंकि मन वासनाओं, कामनाओं, कल्पनाओं और स्मृतियों का जाल है।
संसार माया है, यह भ्रामक बात समझकर लोग संसार छोड़कर भागने लगे। आखिर संसार को छोड़कर कहां जाओगे? जहां जाओगे, वहां संसार ही तो है। एक आदमी संसार से भाग गया। वह क्रोधी था। उसने किसी साधु से सत्संग किया, तो साधु ने कहा- संसार माया है। इसमें रहोगे, तो क्रोध, लोभ, मोह, काम और कुत्सा सब घेरेंगे। इस संसार को छोड़ दो।
उस आदमी को बात समझ में आ गई। उसने कहा- ठीक है। वह जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। पेड़ पर बैठे एक कौवे ने उसके ऊपर बीठ कर दी। कौवा तो ठहरा पक्षी, उसमें इतना ज्ञान कहां। कौवा साधु-संत और सामान्य लोगों में फर्क कैसे कर सकता है। उस आदमी ने क्रोध से आगबबूला होकर हाथों में डंडा उठा लिया। अब कौवा उड़ता रहा और वह डंडा लेकर उसके नीचे-नीचे दौड़ता रहा। कभी वह कौवे की ओर डंडा फेंकता तो कभी उसे पत्थर मारता।
संसार से भागोगे, तो यही होगा। आखिर उसने खुद से ही कहा - यह जंगल भी किसी काम का नहीं। यहां क्रोध से मुक्ति नहीं मिलेगी। यहां भी माया है। वह जाकर नदी किनारे बैठ गया, जहां आसपास कोई पेड़-पौधा नहीं था। वह अपने क्रोध के जाल से इतना उदास और हताश हो गया था कि उसे जीवन अकारथ नजर आने लगा। उसकी नजरों में जब संसार ही अकारथ है और माया है, तो जीने का अर्थ ही क्या? उसने लकडि़यां इकट्ठी कीं और अपने लिए चिता बनाने लगा। उसने सोचा इसमें आग लगाकर खुद बैठ जाऊंगा। आग लगाने को ही था कि आसपास के गांव के लोग आ गए। उन्होंने कहा कि आप यह सब कहीं और जाकर करें, पुलिस हमें बेवजह तंग करेगी। आप जलेंगे, तो दुर्र्गध भी तो हमें ही आएगी। उस आदमी के क्रोध की सीमा न रही।
संसार से भागोगे, तो भागोगे कहां? यहां जीना भी मुश्किल, मरना भी मुश्किल। संसार से भाग नहीं सकते हो। संसार माया है, इस धारणा ने लोगों को गलत संन्यास का रूप दे दिया है। संसार तो परमात्मा का प्रसाद है। संसार के फूल उसी के सौंदर्य की कथा कहते हैं। ये पक्षी उसी की प्रीति के गीत गाते हैं। ये तारे उसी की आंखों की जगमगाहट हैं। यह सारा अस्तित्व उससे भरपूर है, लबालब है।
लेकिन फिर भी मैं जानता हूं कि संसार में अगर कोई चीज माया है, तो वह एक ही है- वह है मन। मन ही भ्रमित करता है। इसलिए संसार से भागना नहीं, बल्कि मन से छूट जाना संन्यास है। मन से मुक्त हो जाना संन्यास है। इसके लिए पहाड़ों पर, गुफाओं में जाने की कोई जरूरत नहीं। दुकान में, बाजार में, घर में- तुम जहां हो, वहीं मन से छूटा जा सकता है। मन से छूटने की सीधी सी विधि है : अगर मन अतीत में जाता है, तो उसे जाने दो। लेकिन जब भी वह अतीत में जाए, उसे वापस लौटा लाओ। कहो कि भैया, अतीत में नहीं जाते। जो हो गया, सो हो गया। पीछे नहीं लौटते। इसी तरह जब मन भविष्य में जाने लगे, तब भी कहना, भैया इधर भी नहीं। अभी भविष्य आया ही नहीं, तो वहां जाकर क्या करोगे। यहीं, अभी और इस वक्त में रहो। यह क्षण तुम्हारा सर्वस्व हो। ऐसा होते ही, सारी माया मिट जाएगी। मन के सारे जंजाल खत्म हो जाएंगे।
ऐसे में अंधकार चला जाता है और रोशनी हो जाती है। क्योंकि अतीत और भविष्य दोनों ही अभाव हैं, उनका अस्तित्व नहीं है। वे अंधकार की तरह हैं, जबकि वर्तमान ज्योतिर्मय है।
जिन ऋषियों ने कहा है कि हे प्रभु, हमें तमस से ज्योति की ओर ले चलो, वे उस अंधेरे की बात नहीं कर रहे हैं, जो अमावस की रात को घेर लेता है। वे उस अंधेरे की बात कर रहे हैं, जो तुम्हारे अतीत और भविष्य में डोलने के कारण तुम्हारे भीतर घिरा है। और वे किस ज्योतिर्मय लोक की बात कर रहे हैं? वर्तमान में ठहर जाओ, ध्यान में रुक जाओ, समाधि का दीया जल जाए, तो अभी रोशनी हो जाए। जब तुम्हारे भीतर रोशनी हो जाए, तो तुम जो देखोगे, वही सत्य है।

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