सदाचार का जीवन जीने की प्रेरणा

सदाचार का जीवन जीने की प्रेरणा

विरक्त संत एकांत में भगवान की भक्ति-साधना में मस्त रहते हैं। एक बार संत को एक बादशाह ने अपने महल में आने के लिए बुलावा भेजा। संत ने कागज पर लिखकर दिया, संतन को कहा सीकरी सों काम, आवत-जात पनहिया टूटी-बिसर गयौ हरिनाम। यानी मुझे राजा व उसके महल से क्या लेना-देना है? वन का एकांत छोड़कर वहां तक जाने में पैरों की जूती घिसेगी और इतने समय में मैं हरिनाम से वंचित रह जाऊंगा। बादशाह ने पंक्ति पढ़ी, तो उसने संत को वहीं से प्रणाम किया।

कुछ संत कभी-कभी धनाढ्यों और राजाओं को सत्कर्मों में लगाने के उद्देश्य से उनका आतिथ्य स्वीकार करते हैं। संत जलालुद्दीन ऊंचे फकीर माने जाते थे। एक बार उन्हें पता चला कि राज्य का बादशाह स्वेच्छाचारी हो गया है। संत महल में जा पहुंचे और राजा को विलासी जीवन त्यागने और गरीबों की सहायता करने जैसी अनेक नसीहतें दीं। उनके शिष्यों को पता चला, तो उन्हें दुख हुआ, क्योंकि कुरान में लिखा है कि सच्चे फकीर को किसी महल में नहीं जाना चाहिए। बाबा जलालुद्दीन ने शिष्यों से कहा, बादशाह तो अज्ञानी है। मेरे पास आने की उसे फुर्सत नहीं। मैं उससे कुछ लेने नहीं गया था। फकीरों का यह भी कर्तव्य है कि वे छोटे-बड़े सभी को नसीहत देकर अच्छा बनाएं।

शिष्य संत जी के तर्क से संतुष्ट होकर उनके समक्ष नतमस्तक हो उठे।


संत का यह भी कर्तव्य है कि वे सभी को नसीहत देकर अच्छा बनाएं, फिर चाहे वह राजा हो, या कोई रंक।


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